स्वतंत्रपणे परिणमी रह्यां छे; माटे तेना पक्षपात रहित हुं अत्यंत मध्यस्थ छुं.
ज्ञानस्वरूप आत्मानो आवो मध्यस्थ स्वभाव छे.
आत्मा बीजानुं कांई करी न शके तो तो ते शक्तिहीन थई गयो–एम अज्ञानीने
लागे छे, पण भाई! तारी स्वशक्ति तो तारामां काम करे के परमां? जो तारो
आत्मा परनां काम करे ने पर चीज तारा आत्मानुं काम करे,–तो तारा कार्य माटे
तारे पर सामे ज जोवानी ओशीयाळ रही,–ए तो महा विपरीतता छे,
पराधीनता छे, दुःख छे. तारी स्वशक्ति तारामां, ते स्वाधीनपणे निजकार्य करे छे,
पोताना कार्य माटे तेने परनी जराय अपेक्षा नथी. आवुं अकारण–कार्यपणुं तारा
आत्मामां छे, तेमज बधाय पदार्थोमां छे. तारा अकारण–कार्य स्वभावने लीधे
तारा बधा गुणोमां ने तेनी पर्यायोमां अकारण–अकार्यपणुं छे, तारा एक्केय
गुणमां के एक्केय पर्यायमां पर साथे कारण–कार्यपणुं नथी. तारो स्वभाव कारण
ने तारी पर्याय कार्य; शुद्धस्वभावरूप जे कारण तेनुं कार्य पण शुद्ध छे, अशुद्धता ते
खरेखर शुद्धशक्तिनुं कार्य नथी. अशुद्धतानुं कारण थवानो कोई गुण आत्मामां
नथी. आवी शुद्ध शक्तिवाळा ज्ञानमात्र आत्माने (–शुद्धकार्य सहित) सम्यग्द्रष्टि
देखे छे.
आत्माने भूलीने तुं चार गतिमां रखडयो ने तें महा दुःख भोगव्या. तारो
स्वभाव मोटो छे ने तारा दुःखनी वीतककथा पण मोटी छे; ते दुःख मटाडवानी, ने
आत्मसुख प्राप्त करवानी आ वात छे. तारा स्ववैभवने संभाळतां तेमां दुःख
क््यांय छे ज नहीं. जैनशासनमां वीतरागी सन्तोए आवा आत्मवैभवनी प्रसिद्धि
करी छे.