Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
शरीरादिना कोईपण कार्यनुं कारण थाय एवो कोई स्वभाव आत्माना द्रव्यमां
गुणमां के पर्यायमां नथी. तेमज शरीरादिने कारण बनावीने आत्मा तेनाथी कांई धर्म
करे–एवो पण स्वभाव नथी. आत्माने कांई आपे एवो स्वभाव जडमां नथी, ने
जडमांथी कांई ल्ये एवो स्वभाव आत्मामां नथी. आत्माने परनी साथे कारण–
कार्यपणानो अभाव छे. कारण–कार्यनी वात काढी नांखीने परनी साथेनो संबंध ज
तोडी नाख्यो, एटले हवे पोताना त्रिकाळी द्रव्य–गुण साथे ज पर्यायनो संबंध थयो,
पर्याय परथी पाछी वळीने स्वद्रव्य तरफ वळी; पोताना शुद्ध द्रव्यगुणमां एकाग्र थतां
पर्याय पण तेवी निर्मळ थई. ते पर्यायमां परनी साथे (रागनी साथे) कारण–
कार्यपणानो कांई संबंध नथी. आनुं नाम धर्म, ने आ मोक्षनो मार्ग.
श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के
छूटे देहाध्यास तो नहीं कर्ता तुं कर्म,
नहीं भोक्ता तुं तेहनो, ए ज धर्मनो मर्म.
छूटे राग–अध्यास तो, नहीं कर्ता तुं कर्म,
नहीं भोक्ता तुं तेहनो, एज धर्मनो मर्म.
देह हुं, राग हुं, ने ते मारुं कार्य एवी जे राग साथे एकत्वबुद्धि, तेने लीधे
अज्ञानी रागादिनो कर्ता थाय छे; हुं तो ज्ञान छुं, राग हुं नथी, ने राग मारा ज्ञाननुं
कार्य नथी–एवी भिन्नताना भान वडे ज्यां राग साथे एकताबुद्धिनो अध्यास छूटी
गयो त्यां धर्मीजीव ज्ञानरूपे ज परिणमे छे, ते रागादिनो कर्ता–भोक्ता थतो नथी.
आवी दशा प्रगटे तेनुं नाम धर्म छे.
अशुद्धउपयोगना नाशने माटे धर्मी जीव केवी मध्यस्थ–भावना प्रगट करे छे तेनुं
हुं देह नहीं, वाणी न, मन नहीं, तेमनुं कारण नहीं;
कर्ता न, कारयिता न, अनुमंता हुं कर्तानो नहीं. (१६०)
जेने देहादिनां कार्यो प्रत्ये कर्तृत्वबुद्धि होय तेने तेमां मध्यस्थता रही शके ज
नहीं. धर्मी जाणे छे के हुं देहादिनो आधार नथी, कर्ता नथी, कारण