Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : ७ :
आवो महा चैतन्य–रत्नाकर आत्मा जगतमां सौथी श्रेष्ठ रत्न छे. आवा श्रेष्ठ चैतन्य–
रत्नोनो महा मोटो भंडार तुं पोते, ने बीजेथी तुं सुख लेवा जा ए तो, मीठा पाणीना
दरियामां रहेतुं माछलुं पोतानी तरस छीपाववा बीजा पासे पाणी मांगे एना जेवुं छे.
जेम चक्रवर्तीराजा बीजा पासे भीख मांगे ए शोभे नहीं; तो चक्रवर्ती पण जेने सेवे
एवो आ मोटो चैतन्य–चक्रवर्ती, ते पोतानुं सुख बीजा पासे मांगे ए तेने शोभतुं
नथी. आत्मा पोते पोताना स्वभावना सेवनथी ज शोभे छे. हे जीव! तारुं रूप तो
स्वाधीनपणे परिपूर्ण छे तेने बदले परने लईने मारामां गुण थाय एम तुं माने छे ते
तो तने मोहनुं भूत वळग्युं छे.
तारा कारण–कार्य तारामां छे–ए वात समजावीने संतोए अपूर्व
स्वाधीनतानुं ज्ञान कराव्युं छे. स्वाधीन होवा छतां पोते पोताने पराधीन मानी
बेठो हतो. भाई, तारा कार्यनुं कारण तारामां ज छे, परनी साथे तारा कोई पण
गुणने कारण–कार्यपणुं छे ज नहि, पछी बीजे शोधवानुं क््यां रह्युं? अंतर्मुख थईने
पोताना स्वभावने ज साधन बनाव. स्वभावने साधनपणे अंगीकार करतां,
आत्मा पोते साधन थईने केवळज्ञानादि कार्यरूपे परिणमी जाय छे. परना
अवलंबने के रागना अवलंबने आत्मामां केवळज्ञानादि कार्य थाय–एवो आत्मानो
स्वभाव नथी. तेमज परवस्तुमां पण एवो स्वभाव नथी के तेओ आत्माने कांई
आपे, अथवा आत्मानुं साधन थाय.
अहा, केटलो स्वाधीन स्वभाव! केटली निराकुळता ने केटली शांति!
अनंत गुणना वैभववाळा आ आत्मामां एवो कोई गुण नथी के जे रागने
करे ने कर्मने कारणरूप थाय. अने आत्मगुणना आश्रये जे निर्मळ परिणति प्रगटी
ते पण अन्यने (रागने के कर्मने) कारणरूप थती नथी के अन्यने पोतानुं कारण
बनावती नथी. धर्मीनो आत्मा कारण थईने रागने करे के मकान वगेरेनी रचना
करे–एम नथी. जे शुभराग थाय ते रागनुं कारण थवानो आत्मानो स्वभाव नथी;
तेमज पोताना स्वभावकार्यमां रागने कारण बनावे एवो पण आत्मानो स्वभाव
नथी. आवो स्वभाव जेणे प्रतीतमां लीधो तेने अकारण–कार्य–स्वभावनुं सम्यक्
परिणमन प्रगट्युं, एटले रागादिना कर्तृत्वरहित ज्ञानभावपणे ज रहेतो ते मोक्षने
साधे छे.