Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
आत्माने पोताना धर्मनी परिणति माटे देहादिनी क्रिया साधन थाय एम माने तेने
आत्माना स्वभावनी खबर नथी. परमेश्वरपणुं पोतामांथी प्राप्त थाय ने बीजानी
ओशीयाळ न रहे एवी आ वात छे. आवो ज आत्मानो वैभव छे. आ वस्तु
लक्षमां ल्ये तो उपादान–निमित्त के निश्चय–व्यवहार वगेरे बधा तत्त्वोनो निर्णय
थई जाय. अरे आत्मा! तारामां प्रभुतानुं परम सामर्थ्य भर्युं छे पछी तारे बीजा
कोनी मदद लेवी छे? तारी शक्तिमां एवी कोई अधूराश क््यां छे के तारे बहारमां
बीजा कारणने शोधवा पडे? अरे, स्वशक्तिमां महान सामर्थ्य छे तेने भूलीने,
निमित्तकारण पासे दीनता करीने तुं केम अटक्यो? परने कारणे आत्मामां हीनता
थाय ए वात तो दूर रहो, ने पोतानी पर्यायने कारणे हीनता थाय ते पण
आत्माना स्वभावमां नथी. दीनता के हीनता वगरनो आत्मस्वभाव छे तेनी
शक्तिमांथी तो पूरो विकास ज प्रगटे, अने ते पण अन्य कारण वगर ज प्रगटे
एवो आत्मानो स्वभाव छे. स्वभावनो आवो वैभव तारामां भर्यो ज छे, तेमां
नजर कर एटली ज प्रगटवानी वार छे.
समयसार गा. ७२मां आत्मा अने आस्रवोनी भिन्नतानुं वर्णन करतां
आचार्यदेव कहे छे के–आस्रवो आकुळताना उपजावनारा होवाथी दुःखनां कारणो छे;
अने भगवान आत्मा तो, सदाय निराकुळता–स्वभावने लीधे कोईनुं कार्य तेमज
कोईनुं कारण नहि होवाथी, दुःखनुं अकारण छे. आत्मा पोते निजस्वभावथी
दुःखनुं कारण होई शके नहि, दुःखनुं कारण तो नवा आगन्तुक मलिन आस्रवभावो
छे. आत्मानो स्वभाव दुःखनुं कारण नथी. गुणस्वभाव आत्मा पोताना गुणोना
कार्यनुं कारण थाय छे, पण अन्यनुं कारण थतो नथी. जो बीजा साथे कारण–
कार्यपणुं करवा जाय तो त्यां आकुळता ने दुःखनी उत्पत्ति थाय छे. आ रीते पर
साथे एकत्वबुद्धिरूप आस्रव ते दुःखनुं कारण छे ने भगवान आत्मा स्वयमेव
सुखरूप होवाथी दुःखनुं कारण नथी.– आम भिन्नता जाणीने, क्रोधादिथी भिन्न
आत्मस्वभावनो अनुभव करतां आत्मा निर्मळ सुखरूपे परिणमे छे, ने दुःखरूप
एवा आस्रवभावो छूटी जाय छे.
आ चैतन्यदरियामां अनंत गुणरत्नो भर्या छे, एकेक रत्न महान छे;