Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : प :
वन–जंगलमां घूमता, त्यारे पण तेओ आत्मानी आवी प्रभुताने जाणता हता; ने ते
वखतना राग साथे पोताना स्वभावनुं कारण–कार्यपणुं स्वीकारता न हता. ते वखतेय
परना के रागना कारण वगर ज तेमना आत्मामां सम्यग्दर्शनादि कार्य थतुं हतुं. ज्ञानादि
निर्मळभावोना ज कारण–कार्यपणे तेमनो आत्मा परिणमतो हतो. ए ज रीते
सीताजीने पण वनवास वखते अंदर आवा आत्मानुं भान हतुं. मारा आत्माना जीवन
माटे कोई अन्य कारण नथी, मारा ज्ञानने के मारा सुखने अन्य साथे कारण–कार्यपणुं
नथी; परनी साथे कारण–कार्यसंबंध वगरनो मारो निरपेक्ष आत्मा ज मारुं शरण छे;
मारा आनंदमां बीजुं कोई कारण थाय तेम नथी. मारो आनंद स्वभाव ज स्वयं
परिणमीने आनंदरूप कार्य करे छे. दरेक आत्मानो आवो ज स्वभाव छे पण एने जे
लक्षमां ल्ये तेने ते पर्यायमां प्रगटे छे, ने त्यारे भगवान आत्मा पोताना अनेकान्त–
वैभवथी प्रसिद्ध थाय छे. आत्मामां निर्मळ पर्यायना उत्पाद–व्यय थाय छे ते तो
स्वभाव छे, तेमां कोई बीजुं कारण नथी. तेमज आत्मा पोतानी पर्यायवडे कारण
थईने बीजाना कार्यने करे एम पण बनतुं नथी. आत्मानी ज्ञानपर्यायने पोतानी
ज्ञानशक्ति साथे ज कार्य–कारणपणुं छे, ज्ञानावरणादि पर साथे तेने कारण–कार्यपणुं
नथी.
लोको कहे छे के कारणने शोधो.–पण भाई! तुं कारणने क््यां शोधीश?–तारामां
के परमां? परमां तो तारुं कारण छे ज नहीं, एटले एमां शोधवुं नकामुं छे. तारो
सहजस्वभाव ज तारा कारणरूपे परिणमीने तने केवळज्ञान आपे एवो छे.
प्रवचनसारमां आचार्यदेव कहे छे के ज्ञानस्वभावने ज कारणपणे ग्रहवाथी तुरत ज
केवळज्ञान प्रगटे छे. निश्चयथी परनी साथे आत्माने कारकपणानो संबंध नथी–के जेथी
शुद्धआत्मस्वभावनी प्राप्तिने माटे सामग्री (बाह्य साधनो) शोधवानी व्यग्रताथी जीवो
नकामा परतंत्र थाय छे.
पोते कारणरूप थईने बीजानुं कार्य करे नहि एवो ‘अकारण’ स्वभाव, अने
बीजाने कारण तरीके स्वीकारीने पोते तेनुं कार्य न थाय एवो ‘अकार्य’ स्वभाव; आवो
अकारण–कार्यस्वभाव आत्मामां त्रिकाळ छे; ते द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां व्यापक छे,
एटले जेम त्रिकाळी द्रव्य–गुण अन्यथी कराता नथी तेम पर्याय पण अन्यथी कराती
नथी. वाह! केटली स्वाधीनता!