Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
स्वभाव तरफ झुकतां तो विकार टळी जाय छे माटे विकार ते स्वभावनुं कार्य नथी.
तेमज विकारीभावो (शुभराग) कारण थईने आत्माना सम्यग्दर्शनादि कार्यने करे
एम पण नथी. ज्ञानादि निजशक्तिथी आत्मा स्वयं निर्मळ कार्यरूपे परिणमे छे.
आत्मानी एक्केय शक्ति एवी नथी के निजकार्य माटे बीजानुं अवलंबन ल्ये. ज्ञान
पोताना कार्य माटे बीजानुं अवलंबन ल्ये अथवा तो ज्ञान परिणमीने बीजानुं कार्य
करे–एवुं अन्य साथे कार्य–कारणपणुं ज्ञानमां नथी. आत्मानी ज्ञानशक्तिने
ज्ञानावरणकर्मनी साथे खरेखर कारण–कार्यपणुं नथी. आत्मानी आवी अकारण–
कार्यशक्ति सर्वगुणोमां व्यापेली छे एटले ज्ञाननी जेम श्रद्धा, आनंद वगेरे कोई
पण गुणने के तेनी पर्यायने पर साथे कारण–कार्यपणुं नथी. शुभ–राग कारण
थईने सम्यग्दर्शनादि कार्यने करी द्ये–एम बनतुं नथी. रागमांथी सम्यग्दर्शनादि कार्य
आवे तो तो आत्मा रागमय थई गयो; केमके कारण अने कार्य जुदी जातना न
होय.
आत्मानी दरेक शक्तिमां स्वयं कारण–कार्यपणुं समाय छे, पर साथे एनो
संबंध नथी. आनंदनुं कारण कोण? के आत्मानी आनंदशक्ति ज आनंदनुं कारण
छे. ज्ञाननुं कारण कोण? के ज्ञानशक्ति ज ज्ञाननुं कारण छे. एम अनंत गुणोमां
पोतपोताना कार्यनुं कारण थवानी ताकात छे. पर साथे कारण–कार्यपणुं नथी.
आत्माना अनंतगुणो सदा एकक्षेत्रे रहेला छे, गुणोने क्षेत्रभेद नथी. द्रव्य–गुणने
सदा एकक्षेत्रपणुं छे ने तेनी पर्याय पण स्वक्षेत्रमां ज व्यापक छे. आत्माना आवा
द्रव्य–गुण के पर्यायमां अन्यनुं कारण–कार्यपणुं जरापण नथी. ज्यां अकारण–
कार्यस्वभावी आवुं द्रव्य द्रष्टिमां लीधुं त्यां स्वद्रव्यने ज कारण बनावीने
निर्मळपर्यायरूप कार्य थाय छे. श्रद्धामां, ज्ञानमां, चारित्रमां, आनंदमां बधा
गुणोनी निर्मळपर्यायमां स्वशक्ति ज कारणरूप छे, बीजुं कोई कारण नथी. बीजाने
पोतानुं कारण बनावे एवुं पराधीनपणुं आत्माना स्वभावमां ज नथी. स्व–कारण–
कार्यनी स्वाधीन प्रभुतामां भगवान आत्मा बिराजी रह्यो छे.
भगवान! तारी शांति माटे, सुख माटे बीजुं कोई कारण छे ज नहीं,
तारामां ज तारी शांतिनुं, सुखनुं कारण थवानो स्वभाव छे. श्री रामचन्द्रजी ज्यारे
लक्ष्मणना शरीरने खभे उपाडीने फरता, ने ज्यारे सीतानी शोधमां