आपका दर्शन होता है व उपदेश सुनता हूं तब तब आपके सान्निध्यमें रहनेकी
भावना जगती है, किन्तु हम तो संसारकी झंझटोमें फंसे हुए हैं! हे गुरुदेव! आज
यह पवित्र तीर्थस्थानमें आकर आपको नमस्कार करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता
अत: मेरी प्रार्थना है कि आप बहुत बहुत चिरायु हों और आपके आशीर्वादसे
मुझे व समाजके सभी भाई–बहेनोंको भी उच्च भावना मिला करे. आज जैसे
हमलोग भगवान कुंदकुंद स्वामीका नाम मंगलरूपमें लेते है वैसे समाजमें
भविष्यकी पीढीके लोग आपका नाम लेते रहेगें.–आम कहीने सभाना आनंदकारी
गडगडाट वच्चे वाजते–गाजते सौ सरस्वती–भवननुं उद्घाटन करवा गया हता.
त्यां पू. गुरुदेवनी उपस्थितिमां श्री शाहुजीए उद्घाटन कर्युं हतुं. समयसारजी
सन्मुख ज्ञानदीवडो प्रगटावीने पूजा थई हती. गुरुदेव सरस्वती–भवनमां पधार्या
हता, ने गुरुदेवना सुहस्ते शाहुजीने समयसार वगेरे शास्त्रोनी भेट आपवामां
साथे तत्त्वगोष्ठी करता होईए, एवो आह्लाद बहुमान ने
श्रुतभावना जागे छे; अने जाणे कोई जुदी ज दुनियामां
विचरता होईए एवुं लागे छे.