Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : २प :
चोथा अवसर है (डालमीआनगर, कलकत्ता, दिल्ही ने सोनगढ) जब जब मुझे
आपका दर्शन होता है व उपदेश सुनता हूं तब तब आपके सान्निध्यमें रहनेकी
भावना जगती है, किन्तु हम तो संसारकी झंझटोमें फंसे हुए हैं! हे गुरुदेव! आज
यह पवित्र तीर्थस्थानमें आकर आपको नमस्कार करते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता
हो रही है; आपके द्वारा सभीको ज्ञान मिलता है–सुख मिलता है, शांति मिलती है,
अत: मेरी प्रार्थना है कि आप बहुत बहुत चिरायु हों और आपके आशीर्वादसे
मुझे व समाजके सभी भाई–बहेनोंको भी उच्च भावना मिला करे. आज जैसे
हमलोग भगवान कुंदकुंद स्वामीका नाम मंगलरूपमें लेते है वैसे समाजमें
भविष्यकी पीढीके लोग आपका नाम लेते रहेगें.–आम कहीने सभाना आनंदकारी
गडगडाट वच्चे वाजते–गाजते सौ सरस्वती–भवननुं उद्घाटन करवा गया हता.
त्यां पू. गुरुदेवनी उपस्थितिमां श्री शाहुजीए उद्घाटन कर्युं हतुं. समयसारजी
सन्मुख ज्ञानदीवडो प्रगटावीने पूजा थई हती. गुरुदेव सरस्वती–भवनमां पधार्या
हता, ने गुरुदेवना सुहस्ते शाहुजीने समयसार वगेरे शास्त्रोनी भेट आपवामां
आवी हती.–आम उत्साहपूर्वक उद्घाटन–उत्सव पूर्ण थयो हतो.
जयजिनेन्द्र
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* भाद्र सुद ४ नी रात्रे जैन विद्यार्थीगृहना बाळकोए “श्रीकंठ वैराग्य”
(अर्थात् चलो नंदीश्वर) नुं धार्मिक नाटक कर्युं हतुं.
* भाद्र सुद पांचमे सवारे भगवान श्री जिनेन्द्रदेवनी रथयात्रा नीकळी हती.
* भाद्र सुद दशमे सुगंधदशमी निमित्ते श्री जिनमंदिरमां समूहरूपे दशपूजन
तथा दशस्तोत्र सहित धूपक्षेपण थयुं हतुं.
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मुमुक्षुने वीतरागीसन्तोनी वाणीनी स्वाध्याय अने
मनन करतां, जाणे के ते संतोना चरणसमीप बेसीने ते संतोनी
साथे तत्त्वगोष्ठी करता होईए, एवो आह्लाद बहुमान ने
श्रुतभावना जागे छे; अने जाणे कोई जुदी ज दुनियामां
विचरता होईए एवुं लागे छे.
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