Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
* हे जीव! भेदज्ञानवडे आनंदित था *
(संवर–अधिकारना प्रवचनमांथी)
–– * ––
* निर्मळ ज्ञानना आधारे आत्मा जणाय छे, ने विकल्प एक बाजु रही जाय
छे. विकल्प ए ज्ञानथी जुदी वस्तु छे, ज्ञान साथे ते एकमेक नथी.–आवुं
भेदज्ञान प्रशंसनीय छे, अभिनंदनीय छे, केमके ते संवरनो उत्कृष्ट उपाय छे,
ने मोक्षनुं कारण छे.
* आत्माने जाणनारुं जे निर्मळ ज्ञान छे ते संवर छे, अने विकल्प ते आस्रव
छे. संवररूप ज्ञान ते आस्रवनो तिरस्कार करे छे, तेने आत्मामांथी दूर करे
छे. आवा संवररूप भेदज्ञानने अपूर्व मंगळ कहीने आचार्यदेवे अभिनंद्युं छे.
* संवर–अधिकार कहो, भेदज्ञाननो अधिकार कहो, के शुद्धआत्मानी भावनानो
अधिकार कहो. ‘“ सिद्ध नम:’ एवा मध्यमंगलपूर्वक आ अधिकार शरू कर्यो
छे. धर्म कहो के संवर कहो, तेनुं मूळ भेदज्ञान छे, ने भेदज्ञान ते मंगळ छे.
* आ तो सम्यग्दर्शन माटेना महा पवित्र मंत्रो छे, मोक्षना अफर मंत्रो छे.
* ज्ञानना आधारे क्रोध नथी ने क्रोधना आधारे ज्ञान नथी,–केमके बंनेनुं स्वरूप
एकबीजाथी तद्न विपरीत छे. ज्ञानना आधारे आत्मा छे ने आत्माना
आधारे ज्ञान छे –केमके बंनेनुं स्वरूप एक छे; पण तेवी रीते उपयोगस्वरूप
आत्माना आधारे रागादि नथी, ने रागादिना आधारे उपयोग नथी, केमके
बंनेनुं स्वरूप एक नथी पण तद्न भिन्न छे; अने भिन्न वस्तुओ वच्चे
आधार–आधेयपणुं होतुं नथी.
* ‘उपयोग’ एटले के स्वसन्मुख जे ज्ञान, तेमां आत्मा छे, पण तेमां राग
नथी; एटले राग वडे ते निर्मळ उपयोग प्रगटे एम नथी.
* उपयोग ज्यारे अंर्त स्वभावमां वळे छे त्यारे राग तेमां भेगो आवतो
नथी. ते उपयोगने उपयोगस्वरूप–आत्मा साथे तन्मयता छे, पण तेने राग
साथे तन्मयता नथी.–आम उपयोगने अने रागने तद्न भिन्नता होवाथी
तेमने कर्ताकर्मपणुं नथी. उपयोग रागने जरापण पोतानो करतो नथी, तेने
पोताथी पारको ज जाणे छे.–आनुं नाम भेदज्ञान, ने आ संवरनो उपाय;–ते
अभिनंदनीय छे; ते मंगळरूप छे.