Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : २७ :
* राग साथे मळेलुं ज्ञान आत्माने जाणी शकतुं नथी.
* रागथी जुदुं पडेलुं ज्ञान आत्माने जाणी शके छे.
* रागथी जुदुं पडेलुं ज्ञान ज शुद्धआत्माने झीली शके छे, माटे ते ज्ञानना
आधारे आत्मा छे; रागना आधारे आत्मा नथी, केमके रागमां एवी ताकात
नथी के शुद्धआत्माने झीली शके.
* शुद्धात्मा तरफ वळेल उपयोगरूप अखंड पर्याय ते संवर. ते संवरमां रागनो
अभाव, आस्रवनो अभाव.
* अंतरमां वळेली निर्मळ संवरपर्यायने अभेदपणे आत्मा कह्यो, केमके ते
पर्याय आत्मस्वभाव साथे अभेद छे.
रागादि बाह्य परिणतिने आत्मा न कह्यो केमके तेने आत्माना स्वभाव
साथे एकता नथी पण भिन्नता छे.
* जे रागादि भावो छे ते ‘ज्ञानमय’ नथी एटले के अज्ञानमय छे; ते
अज्ञानमय भावोना आधारे आत्मा केम होय? तेना आधारे ज्ञान के संवर
केम होय?–ते तो ज्ञानथी विरुद्ध एवा आस्रवो छे.
अंतर्मुख थयेलुं जे राग वगरनुं निर्मळज्ञान, ते ज्ञानना आधारे आत्मा
छे, ते पोते संवररूप छे, तेमां आस्रवनो अभाव छे.
आ रीते ज्ञानने अने रागादिने अत्यंत भिन्नता छे–एम समजावीने
तेमनुं भेदज्ञान कराव्युं.–आवा भेदज्ञानवडे आनंदनो अनुभव थाय छे. माटे
हे जीवो! आवुं भेदज्ञान करीने तमे आनंदित थाओ.
* आनंदनो अनुभव थतां राग भिन्न रही जाय छे. आनंद अने राग–ए बंने
एक वस्तु नथी पण भिन्नभिन्न वस्तु छे.
* आत्मा मुदित क््यारे थाय? एटले के प्रसन्न क््यारे थाय?–के ज्यारे भेदज्ञान
करे त्यारे; भेदज्ञानमां राग अने ज्ञाननो भिन्न स्वाद आवे छे. एवुं भेदज्ञान
करावीने आचार्यदेव तेनी प्रेरणा आपे छे के हे सत्पुरुषो! आवुं भेदज्ञान
करीने हवे तमे आनंदित थाओ...मुदित थाओ...प्रसन्न थाओ.