Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
संगवाळो–मलिन छे अने वस्तुस्वभावे शुद्ध छे–एवो अनेकांत छे; पण ते बे पडखां
जाणीने एकपणुं प्रगट कर्या वगर अनेकांतनुं यथार्थ प्रयोजन सिद्ध थतुं नथी, एटले के
‘स्वभावे शुद्ध अने अवस्थाए अशुद्ध’ एम बे पडखां जाणीने तेनी सामे ज जोया करे
अने शुद्धस्वभाव तरफ न वळे तो तेने निजपदनी प्राप्ति थती नथी ने अशुद्धता टळती
नथी. पण त्रिकाळ स्वभावे हुं शुद्ध छुं, ने क्षणिक पर्यायमां अशुद्धता छे, एम बंने
पडखांने जाणीने, जो त्रिकाळी शुद्ध स्वभाव तरफ वळे तो निजपदनी प्राप्ति थाय छे, ने
अशुद्धता टळे छे.
अहीं जेम शुद्ध अने अशुद्ध ए बे बोलमां अनेकांत समजाव्यो ते प्रमाणे
उपादान –निमित्त, निश्चय–व्यवहार वगेरे बधा बोलमां पण समजवुं. उपादान छे अने
निमित्त पण छे–एम बंनेने जाणे खरो, पण तेमां उपादानथी वस्तुनुं काम थाय छे अने
निमित्त कांई करतुं नथी–एम समजीने जो उपादान तरफ वळे तो अनेकांत कहेवाय.
अनादिनो अज्ञानी जीव साचुं आत्मभान पोतानी लायकातथी ज्यारे प्रगट करे त्यारे
तेने आत्मज्ञानी सद्गुरु ज निमित्तरूपे अवश्य होय. साचुं निमित्त न होय तेम बने
नहीं, तेम ज निमित्त कांई करी दे–एम पण बने नहीं. श्रीमद् कहे छे के–
बुझी चहत जो प्यास को, है बूझनकी रीत,
पावे नहि गुरुगम विना, ए ही अनादि स्थित.
पायाकी ये बात है, निज छंदन को छोड,
पीछे लाग सत्पुरुषको तो सब बंधन तोड.
हे भाई! जो तुं आत्मस्वभावनुं भान करवा चाहतो हो अने अनादिनुं अज्ञान
टाळवुं होय तो तेनी रीत छे. पण गुरुगम विना ते रीत हाथ आवे तेम नथी–एवी
अनादि वस्तुस्थिति छे. चैतन्यस्वभाव कोण छे ते गुरुगम वगर समजाय नहीं. जीव
ज्यारे सम्यग्ज्ञान पामे छे त्यारे ते पोतानी लायकातथी ज पामे छे, पण ते लायकात
वखते निमित्तपणे गुरुगम न होय एम बने नहीं.–आवो अनेकांत छे; निमित्त कांई करे
नहीं अने अज्ञानी निमित्त होय नहीं. जेम चार मण चोखा लेवा जाय त्यां अढी शेरनो
कोथळो भेगो होय, पण चार मण चोखा भेगो अढी शेरनो कोथळो रंधाय नहीं, तेम
चैतन्यस्वभावने जाणवामां ज्ञानी निमित्त तरीके होय छे, ते बारदान छे–बहारनी चीज
छे. ते निमित्त कांई समजावी देतुं नथी. ज्ञानी सिवाय अज्ञानी निमित्त होय नहीं, ने
आत्माना आनंदना अनुभवमां निमित्त कांई करे नहीं. जेम ऊंचुं केसर लेवा जाय त्यां
बारदान