Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
मलकापुरना भाईश्री रतनलालसा पन्नालालसाना सुपुत्र भाईश्री रमेशकुमारे
श्रावण वद १४ ना रोज पू. गुरुदेव समक्ष आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे.
तेमनी उंमर २६ वर्ष छे, अने तेओ बालब्रह्मचारी छे. पांचेक वर्षथी तेओ सोनगढना
रेकोर्डिंगरील प्रवचनोनो प्रचारविभाग संभाळे छे; ने सोनगढमां पू. गुरुदेवना सत्संगनो
लाभ ल्ये छे. हमणां जे नव कुमारिकाबेनोए ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा लीधी तेमां एक तेमना बहेन
पण हता. आ रीते भाई–बहेन बंनेए आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा लीधी छे. श्री रमेशभाई
पोतानी भावनाओमां उत्साहथी आगळ वधे एवी शुभेच्छा साथे तेमने धन्यवाद.
१०० वचनामृत मोकलो........
सौराष्ट्रमां अध्यात्मना बीज रोपनार महान जैन सन्त श्रीमद् राजचंद्रजीनी आ
कारतक सुद पूर्णिमाए जन्मशताब्दि छे; तेमनी जन्मशताब्दिना आ प्रसंगे ते
पवित्रात्मा प्रत्ये भावभीनी अंजलिरूपे तेमना १०० वचनामृतो आत्मधर्मना आगामी
अंकमां प्रगट करवानी भावना छे. तो पुस्तकमांथी पसंद करीने तेमनां वचनामृत लखी
मोकलवा माटे जिज्ञासुओने वात्सल्यपूर्वक निमंत्रण छे.
आ वचनामृत छापेल पुस्तकमांथी अक्षरश: उतारेला होवा जोईए; तथा तेमां
वर्ष अगर तिथि पण लखवा–जेथी पुस्तकमांथी शोधवा सुगम पडे. (आवेला
वचनामृतोमांथी १०० वचनामृतोनुं संकलन करीशुं.
–संपादक
रजत जयंतिनुं वर्ष
आवता अंके आपणुं आत्मधर्म २४ वर्ष पूर्ण करशे. ने त्यारपछीना अंके
पचीसमा वर्षमां एटले के रजतजयंतिना वर्षमां प्रवेश करशे. पू. गुरुदेवनी मंगल
छत्रछायामां आनंदोल्लासपूर्वक आपणुं “आत्मधर्म” वधु ने वधु विकसे, ने गुरुदेवना
प्रतापे तेना चार उद्देशो–आत्मार्थीतानुं पोषण, वात्सल्यनो विस्तार, देवगुरुधर्मनी सेवा
ने बाळकोमां धर्मसंस्कारोनुं सींचन–आ चार उद्देशो वधारे ने वधारे सफळ थाय एवी
जिनेन्द्रदेव पासे प्रार्थना करीए छीए.
प्रश्नो मोकलो........
आत्मधर्मनो सर्वप्रिय विभाग “वांचको साथे वातचीत अने तत्त्वचर्चा”–तेने
माटे सौ कोई जिज्ञासुओ प्रश्न के सूचनो मोकली शके छे. आ विभाग मात्र