Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : ४१ :
वांचको साथे वातचीत
अने तत्त्वचर्चा
(सर्वे पाठकोनो प्रिय विभाग)
प्रश्न:– जगतमां अंतरात्मा झाझा के परमात्मा?
उत्तर:– परमात्मा झाझा.
प्रश्न:– कई रीते?
उत्तर:– अंतरात्मा एटले चोथाथी मांडीने बारमा गुणस्थान सुधीना साधक
जीवो, –ते असंख्यात छे; ने परमात्मा एटले अरिहंत अने सिद्ध,–ते अनंता छे. आ
रीते अंतरात्मा करतां परमात्मा अनंतगुणा झाझा छे.
परमात्मानी तो संख्या सदाय वधती ज जाय छे; तेमां एकली आवक ज छे, पण
जावक नथी. जे परमात्मा थया ते कदी परमात्मापणुं छोडीने अंतरात्मा के बहिरात्मा
थता नथी एटले ‘परमात्मा’ मांथी एकेय जीव कदी घटतो नथी; ज्यारे दरवर्षे १२१६
जेटला नवा नवा परमात्माओ वधता जाय छे. अने ‘अंतरात्मा’ जीवो जेम नवा नवा
थता जाय छे, तेम तेमांथी घटता पण जाय छे (–अंतरात्मामांथी जेटला परमात्मा थई
जाय के कोई बहिरात्मा थई जाय, तेटला घटी जाय छे.)
प्रश्न:– स्याद्वादरूप जिनवचनमां रमवुं–एटले शुं?
उत्तर:– परथी भिन्न थईने स्वभावमां एकत्वरूपे परिणमवुं–ते जिनवचननो
सार छे. तेथी स्वभावमां तन्मय थईने जे परिणमे छे ते जिनवचनमां रमे छे. आ रीते
जिनवचनमां जे रमे तेने मोहनो नाश थईने मोक्षनी उत्पत्ति थाय छे.
जिनवचनो ‘शुद्धात्मा’ उपादेय कहे छे; तेथी शुद्धात्माने उपादेय करीने (श्रद्धा–
ज्ञानमां अंगीकार करीने) जे जीव तेमां लीनपणे रमे छे, ते जीव जिनवचनमां रमे छे
एम कहेवामां आवे छे. जे रागने उपादेय माने छे के पराश्रय भावमां रमे छे ते खरेखर
वीतरागी–जिनवचनमां नथी रमतो, जिनवचनना वीतरागी रहस्य तेने खबर नथी.