Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
* दिल्हीथी दीपक जैन (N. 117 लखे छे–अत्यारे माणसो वीटामीन M. थी
सुखी मांगे छे ने दिनरात तेनी पाछळ लागे छे, छतां सुख केम मळतुं नथी? ने दुःखी
केम थाय छे?
बाबुजी! सच्चा सुख वीटामीन M. (मनी) मां नथी, साचुं सुख वीटामीन C.
(चैतन्य) मां छे. पैसामां सुख ज नथी, ए तो जड छे, तो तेनी पाछळ लागवाथी सुख
क््यांथी मळे? तमे लख्युं छे तेम जो वीटामीन
M. एटले ‘मोक्ष’ समजीने तेनो प्रयत्न
करे तो जरूर सुख मळे.
* * *
B. A. नी पदवी बाबत एक मुमुक्षु लखे छे–घणा लोको B. A. थवा वर्षो सुधी
महेनत करे छे, परंतु आपणे तो B. A. एटले ब्रह्मचारी अने आत्मार्थी थवुं–ए साची
B. A. पदवी छे–के जे मोक्षनी दाता छे. अमने तो एवा B. A. थवानी भावना छे.
* बी. एच. जैन (मुंबई) तमारो पत्र मळ्‌यो. आत्मधर्मनी उन्नति माटेना
तमारा उत्तम विचारो माटे धन्यवाद! भाईश्री, तमारा जेवा युवानो धार्मिक विषयोमां
जे उत्साह दर्शावी रह्या छे ते प्रशंसनीय छे. आपे सूचवेली योजना कमिटि पासे रजु
करवामां आवी छे, ने ते बाबतमां कमिटिनी सूचना मुजब करीशुं.
* सुख क््यां छे? अने केम थाय? (किशोर जैन No. 890)
सुख आत्मामां छे ने आत्माना ज्ञानथी एटले के आत्माना अनुभवथी सुख
थाय छे.
अथवा छहढाळामां कह्युं छे के–निराकुळता ते सुख छे, ने ते निराकुळता मोक्षमां
छे; मोक्षनी प्राप्ति सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रवडे थाय छे. माटे तेनो उद्यम करवो जोईए.
* स. नं. 1 नैनाबेन–राजकोट: तमारुं भावभीनुं काव्य मळ्‌युं. ८६ कडीना
गीतमां, जिनेश्वरदेवनुं बहुमान वधारवानी, सोनाना ने हीराना जिनमंदिर
बंधाववानी, तेमां सवा मण सोनानो घंट टांगीने मंगळ प्रभाते रोज वगाडवानी, देव–
गुरु–शास्त्र प्रत्ये भक्तिभाव उल्लसाववानी भेदविज्ञाननी ने जैनशासनने
शोभाववानी, सिद्धोने साचा सगा जाणवानी–एवी एवी घणी ऊंची भावनाओ व्यक्त
करी, ते बदल धन्यवाद! तमारी भावनामां अमारो ने बालविभागना बधा भाई–
बेनोनो पण साथ छे. काव्य घणुं लांबुं छे; जराक व्यवस्थित अने टूंकुं लखीने मोकलशो
तो छापीशुं.
जय जिनेन्द्र