Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: भादरवो : २४९३ आत्मधर्म : ४३ :
* मानसिक चिन्ता क््यांय कही शकाती नथी,–त्यां हवे शुं करवुं? (सभ्य नं. १३८)
उत्तर:– एनो उपाय तो साव सहेलो छे,–ए चिन्ता छोडी देवी ने आत्मानी
चिन्ता करवी...आत्मानुं हित थाय तेवा विचार करवा........(भईला, नानकडा बाळकने
एवी ते कई मोटी चिन्ता आवी पडी के अहीं पूछाववुं पड्युं!)
आत्मा शुं छे?
।। ‘आपणे मनमां जे विचार करीए छीए’ ते कोण करतुं हशे?
(–रजनीकान्त जैन: जसदण)
उत्तर:– १ आत्मा आपणे पोते ज छीए. आत्मा एटले जाणनार स्वरूप तत्त्व.
२. आ बीजा प्रश्ननो उत्तर तो तमारा प्रश्नमां ज समायेलो छे.
* स. नं. २१६ लखे छे–अभ्यासकार्यमां अने गृहकार्यमां रोकायेली छुं छतां
आत्मधर्म घणा रसपूर्वक हंमेशा वांचुं छुं. ने गुरुदेवना सान्निध्यमां रहीने आत्मभान
करवानी भावना भावुं छुं.
प्र:– सम्यग्दर्शन प्राप्त करवा माटेनो झडपी उपाय जणावशो. (N. 216)
उ. :– भूयत्थमस्सिदो खलु सम्माइट्ठी हवइ जीवो
उपरना सूत्रद्वारा कुंदकुंदप्रभुए सम्यग्दर्शननो झडपी उपाय बताव्यो छे.
– परंतु आपणे केवा प्रमादी छीए के तेवी झडप करता नथी!
* सभ्य नं. ७६० ना उत्तरमां जणाववानुं के २४ मांथी पांच तीर्थंकरभगवंतो
बालब्रह्मचारी हता. अनेक स्थळे पांच बालब्रह्मचारी भगवंतोनी प्रतिमाओ छे, तेमज
“पांच बालयती” नी जुनी पूजाओ पण छे. पूजनसंग्रहमां आप ए पूजा जोई शकशो.
उज्जैनथी शरदकुमार जैन लखे छे–“जन्मदिवसनी वधाई अने ऋषभदेव
भगवाननो फोटो जोतां मने हर्षनो पार न रह्यो. भगवानना दर्शन करता चक्रवर्ती भरत
जेम तेमना चरणोमां झुकीने भावभीनी वंदना करे छे तेम मने पण भगवानना दर्शन करतां
घणो आनंद थयो. ने आ भेटनी खुशाली तरीके मारा दिलथी बालविभागने रूा. ११ भेट
मोकल्या छे. (आ रीते घणा बाळको तरफथी दरवर्षे हजारो रूा. नी रकमो बालविभागमां भेट
आवे छे; आ उत्साह अने धार्मिकलागणी माटे ते बाळकोने धन्यवाद!)
सुरेश, पवन, शैलेश (वडोदरा) : श्रावण सुद पूर्णिमाना वात्सल्यपर्व निमित्ते
तमारो पत्र मळ्‌यो. गुरुदेव प्रत्येनी तमारी भक्तिभावना व्यक्त करी–ते प्रशंसनीय छे.
–– धन्यवाद.