Atmadharma magazine - Ank 287
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: ४४ : आत्मधर्म : भादरवो : २४९३
अमारो आफ्रिकानो पत्र

आफ्रिकामां नैरोबी मुमुक्षुमंडळना उत्साही कार्यकर भाईश्री करमणभाई
नरसीए पोतानी सुपुत्रीनो लग्नप्रसंग जैनविधिअनुसार करावीने, तथा ते वखते
चारहजार जेटला धार्मिक पुस्तकोनी लाणी करीने धर्मप्रभावनानो उत्साह बताव्यो छे.
तेमनी आवी लगनी देखीने ते प्रसंगे उपस्थित चारहजार जेटला गुजरातीओ खूब
प्रसन्न थया हता. तेओ पोताना ता. ११–९–६७ना पत्रमां गुरुदेवनो महान उपकार
मानीने लखे छे के–लग्नमां जैनविधि थवाथी धर्मनी घणी प्रभावना थई छे. सवारमां
जिनमंदिरे घणा माणसो सहित प्रभुपूजा तथा भक्ति करीने सिद्धचक्रजीने तथा
शास्त्रजीने गाजतेवाजते मंडपमां पधराव्या. लगभग चारहजार माणसोनी संख्या वच्चे
जैनविधि थई, ते देखीने तथा सांभळीने आखो जैनसमाज घणो प्रभावित थयो हतो,
ने कहानगुरुना जयनाद गाजी ऊठया हता. आ प्रसंगे भगवान ऋषभदेव, जैन
बाळपोथी, कर विचार तो पाम–वगेरे चारहजार जेटला धार्मिक पुस्तको भेटरूप वेंच्या
हता; बधामां ते पुस्तको वंचाया, ने चार दिवस सुधी तो घेरघेर–दुकानेदुकाने एनी ज
चर्चा चालती हती; ने केन्या (आफ्रिका) ना जैनसमाज उपर घणी छाप पडी हती;
कुदेव–कुगुरु–कुधर्मना सेवनथी जीवोनुं केटलुं बूरुं थाय छे ने साचा देव–गुरु–धर्मनुं
सेवन भवसमुद्रथी तरवा माटे जीवोने केटलुं उपकारी थाय छे–वगेरे घणा खुलासा आ
प्रसंगे थया हता. लग्नप्रसंग देव–गुरु–धर्मनी मुख्यतापूर्वक उजवायो होवाथी “आ ज
खरूं सत् छे” एवुं वातावरण छवायुं हतुं. आफ्रिका जेवा पछात परदेशमां पण आजे
आ जे कांई बनी रह्युं छे ते गुरुदेवनो ज महान प्रभाव छे. जैनधर्मनो सन्देश जगतमां
गाजे छे. लंडनथी आवेला आपणा भाईओ पुस्तको लई गया छे ने घणा श्रद्धाळु
बन्या छे. कोलेजमां भणता विद्यार्थीओ पण घणा आव्या हता ने जैनधर्मथी घणा
प्रभावित थया छे. (हजी पण त्यां धार्मिक पुस्तकोनी विशेष मांगणी थती होवाथी
बीजा पुस्तको मंगाव्या छे.)
जैनं जयतु शासनम्