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वीरनो मार्ग
अहो, अंदरथी श्रद्धाना रणकार
करतो आत्मा जागी जाय – एवो आ
वीरमार्ग छे. जेम रणे चडेला राजपूतनी
वीरता छानी न रहे, तेम चैतन्यनी
साधनाना पंथे चडेला ने वीरप्र्रभुना
मार्गे वळेला धर्मात्मानी वीरता छानी
रहे नहि; एनो वैराग्य, एनी श्रद्धानु
जोर, एनो स्वभावनो प्रेम एनो
आत्मानो उत्साह – ए बधुं मुमुक्षुथी
छानुं न रहे. ज्ञानीनी दशा खरेखर
अद्भुत छे.
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. र४९३ आसो (लवाजम: त्रण रूपिया) वर्ष र४: अंक १र