Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 45

background image
आवी रह्यो छे – मुक्तिनो महोत्सव

आसो वद अमास...दीपावली...एटले भगवान महावीरनी मुक्तिनो मंगल
महोत्सव. भगवान महावीर ए दिवसे मोक्ष पाम्या...अनादि संसारनो अंत थईने
अभूतपूर्व एवी सिद्धदशानो प्रभुजीने प्रारंभ थयो...अहा धन्य ते समय...धन्य ते
आत्मदशा! ए आत्मदशाने अभिनंदवा करोडो जीवो देवो ने मनुष्यो पावापुरीमां
आवी पहोंच्या...लाखो दीपकोनी माळावडे ए पावापुरी झगमगी ऊठी...एटले
भगवाननी मुक्तिना आ मंगल उत्सवनुं नाम पड्युं ‘दीप–मालिका’ .
दीपमालिका–दीपावली ए भारतनुं ने तेमांय जैनधर्मनुं विशिष्ट पर्व छे. ए
पुनितपर्व आपणने भगवानना मोक्षगमननुं स्मरण करावे छे, सिद्धपदनी भावना
जगाडे छे. ने भगवानना पंथने ताजो करीने ते मार्गे जवानी प्रेरणा आपे छे. अहा, जे
मार्गे अमारा भगवान सिद्धालयमां सिद्धाव्या ते ज मार्गे अमे पण सिद्धपदने
साधीए,–आवी अंतरनी उर्मिपूर्वक भक्तजनो प्रभुना मोक्षनो महोत्सव उजवे छे.
“भगवान तो मोक्ष पधार्या, एटले भरतक्षेत्रने तो तीर्थंकरनो विरह
पड्यो...अने छतां एनो उत्सव!!”–हा...पण ए कांई भगवानना विरहनो उत्सव
नथी, ए तो मोक्षनी प्राप्तिनो उत्सव छे.. तेमां पोताना मनोरथ प्रत्येना उल्लासनो
आनंद छे. साधकनो मनोरथ छे–सिद्धपद. ए सिद्धपदना स्मरण मात्रथी पण साधकनुं
अंतर पुलकित बने छे. तो भगवानने एवुं सिद्धपद पामतां देखीने एने आनंद केम न
थाय! ने ए सिद्धपदनी अनुमोदनारूपे ते उत्सव केम न ऊजवे! ए साधकना
ज्ञानहृदयमां सिद्धपद कोतराई गयुं छे...साधकना ज्ञानमां सर्वज्ञनो कदी विरह नथी.
आ रीते सिद्धपदने अभिनंदवानुं ने मोक्षनो उत्सव उजववानुं महापर्व नजीक
आवी रह्युं छे... आपणे पण रत्नत्रयना पवित्र दीवडा प्रगटावीने ए मंगल पर्व
उजवीए...ने वीरप्र्रभुना मोक्षपंथे जईए.
जय महावीर.