अभूतपूर्व एवी सिद्धदशानो प्रभुजीने प्रारंभ थयो...अहा धन्य ते समय...धन्य ते
आत्मदशा! ए आत्मदशाने अभिनंदवा करोडो जीवो देवो ने मनुष्यो पावापुरीमां
आवी पहोंच्या...लाखो दीपकोनी माळावडे ए पावापुरी झगमगी ऊठी...एटले
जगाडे छे. ने भगवानना पंथने ताजो करीने ते मार्गे जवानी प्रेरणा आपे छे. अहा, जे
मार्गे अमारा भगवान सिद्धालयमां सिद्धाव्या ते ज मार्गे अमे पण सिद्धपदने
साधीए,–आवी अंतरनी उर्मिपूर्वक भक्तजनो प्रभुना मोक्षनो महोत्सव उजवे छे.
नथी, ए तो मोक्षनी प्राप्तिनो उत्सव छे.. तेमां पोताना मनोरथ प्रत्येना उल्लासनो
अंतर पुलकित बने छे. तो भगवानने एवुं सिद्धपद पामतां देखीने एने आनंद केम न
थाय! ने ए सिद्धपदनी अनुमोदनारूपे ते उत्सव केम न ऊजवे! ए साधकना
ज्ञानहृदयमां सिद्धपद कोतराई गयुं छे...साधकना ज्ञानमां सर्वज्ञनो कदी विरह नथी.
उजवीए...ने वीरप्र्रभुना मोक्षपंथे जईए.