Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९३ आत्मधर्म : १९ :
अने ज्ञान प्रगट्यां छे, अने तेनी पूर्ण प्राप्ति माटेनी भावना वर्ते छे. ‘आवी जेनी दशा
होय ते अल्पकाळे परमपदने पामे’ एवी भगवाननी आज्ञानुं भान छे, अने साथे
पोतानो निश्चय भेळवीने कहे छे के अल्पकाळे जरूर अमे ते परमपदस्वरूप थईशुं.
अंतरस्वभावनी द्रष्टिपूर्वक आवा स्वकाळना अपूर्व पुरुषार्थनी भावना करतां करतां
जेने देह छूटयो तेने पछी विशेष भव होय नहीं. श्रीमद् राजचंद्रजीनुं आवुं आंतरिक
जीवन हतुं; तेओ तो टूंका जीवनमां पोताना आत्मानुं काम करी गया; अने तेमनी
अंतरदशाने जे जीव ओळखशे तेनुं पण कल्याण थशे.
देह छतां जेनी दशा वर्ते देहातीत,
ते ज्ञानीना चरणमां हो वंदन अगणीत.
* * *
क्षणभंगुर दुनियामां सत्पुरुषनो समागम
ए ज अमूल्य अने अनुपम लाभ छे.
(श्री. रा. वर्ष २१ पृ. १६८ नं. ३१)
*
––: ग्राहकोने सूचना :––
(१) सं. २०२४नी सालनुं आत्मधर्म गुजरातीनुं लवाजम रूा. ४=०० छे.
(२) कारतक मासनो प्रथम अंक ता. प–११–६७ना रोज अत्रेथी पोस्ट थशे.
(३) नवा वर्षनी दर मासनी पांचमी तारीखे अंक पोस्ट थशे.
(४) आपनुं लवाजम ता. ३–११–६७ना रोज अत्रे मळी जाय ते प्रमाणे
मोकली आपवा विनंंती छे; जेथी प्रथम अंक आपने समयसर मळी
जाय.
(प) जे मुमुक्षुमंडळो आ संस्थावती लवाजम स्वीकारे छे तेओ पण
ग्राहकोनुं पूरा नाम सरनामा तथा ग्राहक नंबर साथेनुं लीस्ट ता ३–
११–६७ सुधीमां अत्रे मळी जाय ते प्रमाणे मोकली आपवा विनंती छे.