Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४९३ आत्मधर्म : २१ :
३. तारे दोषे तने बंधन छे ए संतनी शिक्षा छे. तारो दोष एटलो ज के अन्यने
पोतानुं मानवुं; पोते पोताने भूली जवुं. (वर्ष २३ आंक १०८)
४. शास्त्रज्ञानथी निवडो नथी. अनुभवज्ञानथी निवेडो छे. (वर्ष २४. २७०)
प. ‘सत्’ सत् ज छे, सरळ छे, सुगम छे, सर्वत्र तेनी प्राप्ति होय छे, पण सत्ने
बतावनार ‘सत्’ जोईए. (वर्ष २४. २०७)
६. जे ज्ञाने करीने भवांत थाय छे ते ज्ञान प्राप्त थवुं जीवने घणुं दुर्लभ छे,
तथापि ते ज्ञान, स्वरूपे तो अत्यंत सुगम छे. (वर्ष २प. ३४०)
७. अनंतवार देहने अर्थे आत्मा गाळ्‌यो छे. जे देह आत्माने अर्थे गळाशे ते देहे
आत्मविचार जन्म पामवा योग्य जाणी, सर्व देहार्थनी कल्पना छोडी दई, एकमात्र
आत्मार्थमां ज तेनो उपयोग करवो, एवो मुमुक्षु जीवने अवश्य निश्चय जोईए.
(वर्ष २८. ७१९)
८. पात्र विना वस्तु न रहे, पात्रे आत्मिक ज्ञान, पात्र थवा सेवो सदा ब्रह्मचर्य
मतिमान. (वर्ष १७. ३४)
९. गमे तेवा तुच्छ विषयमां प्रवेश छतां उज्जवळ आत्माओनो स्वत: वेग
वैराग्यमां झंपलाववुं ए छे. (वर्ष १८)
१०. सर्वज्ञनो धर्म सुशर्ण जाणी, आराध्य आराध्य प्रभाव आणी;
अनाथ एकांत सनाथ थाशे, एना विना कोई न बांह्य स्हाशे;
११. हुं कोण छुं? क््यांथी थयो! शुं स्वरूप छे मारुं खरुं?
कोना संबंधे वळगणा छे, राखुं के ए परिहरुं? (वर्ष १७ आंक ६७)
१२. अनंत सौख्य नाम दुःख त्यां रही न मित्रता, अनंत दुःख नाम सौख्य प्रेम
त्यां विचित्रता, उघाड न्यायनेत्रने निहाळ रे निहाळ तुं; निवृत्ति शीघ्रमेव धारी ते
प्रवृत्ति बाळ तुं.
१३. तेनो तुं बोध पाम के जेनाथी समाधिमरणनी प्राप्ति थाय. एकवार जो
समाधि–मरण थयुं तो सर्वकाळना असमाधिमरण टळशे. सर्वोत्तम पद सर्व त्यागीनुं छे.
(वर्ष २० आंक २प)
१४. क्षणभंगुर दुनियामां सत्पुरुषोनो समागम ए ज अमूल्य अने अनुपम
लाभ छे. (वर्ष २१ आंक ३१)
१प. जगतने रूडुं देखाडवा अनंतवार प्रयत्न कर्युं. तेथी रूडुं थयुं नथी. एक भव
जो आत्मानुं रूडुं थाय तेम व्यतीत करवामां जशे तो अनंत भवनुं साटुं वळी
रहेशे.(वर्ष २१ आंक ३७)
१६. विशाळबुद्धि, मध्यस्थता, सरळता अने