Atmadharma magazine - Ank 288
(Year 24 - Vir Nirvana Samvat 2493, A.D. 1967)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : आसो : २४९३
जितेन्द्रियपणुं आटला गुणो जे आत्मामां होय ते तत्त्व पामवानुं उत्तम पात्र छे.
(वर्ष २१ आंक ४०)
१७. एक भवना थोडा सुख माटे अनंत भवनुं अनंत दुःख नहीं वधारवानो
प्रयत्न सत्पुरुषो करे छे. (वर्ष २२ आंक ४७)
१८. अनंतकाळमां कां तो सत्पात्रता थई नथी अने कां तो सत्पुरुष मळ्‌या नथी.
नहीं तो निश्चय छे के मोक्ष हथेळीमां छे. (वर्ष २२ आंक प६)
१९. गम पड्या विना आगम अनर्थकारक थई पडे छे. सत्संग विना ध्यान ते
तरंगरूप थई पडे छे. संत विना अंतनी वातमां अंत पमातो नथी. लोकसंज्ञाथी लोकाग्रे
जवातुं नथी; लोकत्यागविना वैराग्य यथायोग्य पामवो दुर्लभ छे. (वर्ष २३ आंक १२८)
२०. सुखकी सहेली है अकेली उदासीनता,
अध्यात्मनी जननी ते उदासीनता. (वर्ष २२ आंक ७७)
२१. देहमां विचार करनारो बेठो छे ते देहथी भिन्न छे. ते सुखी छे के दुःखी? ते
संभाळी ले. (वर्ष २३, ८४)
२२. हे जीव! भूल मा. तने सत्य कहुं छुं–सुख अंतरमां छे, ते बहार शोधवाथी
नहीं मळे. (वर्ष २३ आंक १०८)
२३. मोक्षनो मार्ग बहार नथी, पण आत्मामां छे. मार्गने पामेलो मार्ग
पमाडशे. (वर्ष २४. १६६)
२४. बुझी चहत जो प्यास को है बूझनकी रीत,
पावे नहीं गुरुगम बिना, एही अनादि स्थित, (वर्ष २४ आंक २प८)
२प. अनंत काळथी आथडयो, विना भान भगवान;
सेव्या नहीं गुरु संतने, मूकयुं नहीं अभिमान; (वर्ष २४. २६४)
२६. तनसे, मनसे, धनसे, सबसे गुरुदेवकी आन स्वआत्मबसे;
तब कारज सिद्ध बने अपनो, रस अमृत पावहिं प्रेम घनो;
(वर्ष २प आंक २६प)
२७. जो होय पूर्व भणेल नव,पण जीवने जाण्यो नहीं;
तो सर्व ते अज्ञान भाख्युं, साक्षी छे आगम मही; (वर्ष २प आंक २६८)
२८. जीवने स्वच्छंद ए महा मोटो दोष छे. ए जेनो मटी गयो छे तेने मार्गनो
क्रम पामवो बहु सुलभ छे. (वर्ष २प. २९४)