: आसो : २४९३ आत्मधर्म : २३ :
२९. जिंदगी अल्प छे, जंजाळ अनंत छे, संख्यात धन छे अने तृष्णा अनंत छे,
त्यां स्वरूपस्मृति संभवे नहीं; पण ज्यां जंजाळ अल्प छे अने जिंदगी अप्रमत्त छे,
तेमज तृष्णा अल्प छे अथवा नथी अने सर्वसिद्धि छे त्यां स्वरूपस्मृति पूर्ण थवी संभवे
छे. (वर्ष २प आंक ३१९)
३०. देहाभिमान गलित थयुं छे जेनुं तेने सर्व सुखरूप ज छे. जेने भेद नथी
तेने खेद नथी. (वर्ष २प आंक ३प९)
३१. आ लोकस्थिति ज एवी छे के तेमां सत्यनुं भावन करवुं परम विकट छे.
रचना बधी असत्यना आग्रहनी भावना कराववावाळी छे. (वर्ष २प. ३४८)
३२. जगतना अभिप्राय प्रत्ये जोईने जीव पदार्थनो बोध पाम्यो छे, ज्ञानीना
अभिप्राय प्रत्ये जोईने पाम्यो नथी. जे जीव ज्ञानीना अभिप्रायथी बोध पाम्यो छे ते
जीवने सम्यग्दर्शन थाय छे. (वर्ष २प, ३प८)
३३. जेने बोधबीजनी उत्पत्ति होय छे तेने स्वरूपसुखथी करीने परितृप्तपणुं वर्ते
छे अने विषय प्रत्ये अप्रयत्न दशा वर्ते छे.
३४. ते पुरुष नमन करवा योग्य छे, कीर्तन करवा योग्य छे, परम प्रेमे गुणग्राम
करवा योग्य छे, फरी फरी विशिष्ट परिणामे ध्यावन करवा योग्य छे के जे पुरुषने
द्रव्यथी, क्षेत्रथी, काळथी अने भावथी कोई प्रकारनुं प्रतिबद्धपणुं वर्ततुं नथी. (वर्ष
२प, ४००)
३प. गमे तेटली विपत्तिओ पडे, तथापि ज्ञानी द्वारा सांसारिक फळनी ईच्छा
करवी योग्य नथी. (वर्ष २प, ३७४)
३६. आत्मज्ञान जीवने प्रयोजनरूप छे; तेनो सर्वश्रेष्ठ उपाय सद्गुरुवचननुं
श्रवणवुं के सत् शास्त्रोनुं विचारवुं ए छे. (वर्ष २प, ३७प)
३७. दुःखनी निवृत्तिने सर्व जीव ईच्छे छे; अने दुःखनी निवृत्ति, दुःख जेनाथी
जन्म पामे छे एवा रागद्वेष अने अज्ञानादि दोषनी निवृत्ति थया विना, थवी संभवती
नथी. ते रागादिनी निवृत्ति एक आत्मज्ञान सिवाय बीजा कोई प्रकारे भूतकाळमां थई
नथी, वर्तमानकाळमां थती नथी, भविष्यकाळमां थई शके तेम नथी. (वर्ष २प. ३७प)
३८. देह ते आत्मा नथी, आत्मा ते देह नथी. घडाने जोनार जेम घडाथी भिन्न छे तेम
देहनो जोनार, जाणनार एवो आत्मा ते देहथी भिन्न छे अर्थात् देह नथी.(वर्ष २६. ४२प)
३९. ज्ञानी पुरुष प्रत्ये अभिन्नबुद्धि थाय