दुःखमां आव्यो छे, पण दुःख वखतेय पोतानी सुखशक्तिने भेगी राखीने दुःखमां आव्यो छे,
दुःखमां आव्यो छे. आवी निजशक्तिनुं भान करतां सुखशक्तिनुं कार्य एवुं सुख प्रगटे छे ने
दुःख टळे छे.
जोईए. आत्मार्थीने पोताने तरवुं छे तो सामे पण तरनारा देव–गुरु केवा होय तेने पोताना
अनुभवने पामेला एवा देव–गुरु केवा छे तेने पोते पोताना भाव साथे मेळवीने ओळखी
ल्ये छे. अने धर्मात्मानी आवी खरी ओळखाण करीने पछी पोते पण एमना जेवी दशा
प्रगट करे छे. आत्मभावथी धर्मात्माने ओळखतां देवमूढता–गुरुमूढता टळे छे ने ते
ओळखाण पोताने जरूर सम्यकत्वनुं कारण थाय छे.
शुभराग ए एमनी प्रीतिनो के एमना स्वानुभवनो विषय नथी. नानामां नाना
सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्मा होय तेमनी पण आवी ज अंर्तदशा होय छे. एवी अंर्तदशाने ओळखे
त्यारे धर्मात्माने ओळख्या कहेवाय, ने त्यारे पोतामां पण भेदज्ञान थाय.
कोनी साथे अनन्यपणुं छे–ते शोधी ले.....जेनी साथे अनन्यपणुं होय तेनी साथे ज कर्ता–