Atmadharma magazine - Ank 289
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४९४ आत्मधर्म : ७ :
प्र प्र
दुःख वखते ज सुख– आत्मानो सुखस्वभाव छे. निजस्वरूपना अज्ञानने लईने जीव जोके
दुःखमां आव्यो छे, पण दुःख वखतेय पोतानी सुखशक्तिने भेगी राखीने दुःखमां आव्यो छे,
दुःख वखतेय सुखशक्ति तो अंदर साथे राखी ज छे. दुःखने मटाडवानी शक्ति भेगी लईने
दुःखमां आव्यो छे. आवी निजशक्तिनुं भान करतां सुखशक्तिनुं कार्य एवुं सुख प्रगटे छे ने
दुःख टळे छे.
देव–गुरुनी ओणखाण– जेणे पोतानुं हित करवुं छे तेने देवमूढता ने गुरुमूढता टळवी
जोईए. आत्मार्थीने पोताने तरवुं छे तो सामे पण तरनारा देव–गुरु केवा होय तेने पोताना
आत्मभावथी ते ओळखी ल्ये छे. पोताने आत्मअनुभव साधवो छे तो सामे आत्म–
अनुभवने पामेला एवा देव–गुरु केवा छे तेने पोते पोताना भाव साथे मेळवीने ओळखी
ल्ये छे. अने धर्मात्मानी आवी खरी ओळखाण करीने पछी पोते पण एमना जेवी दशा
प्रगट करे छे. आत्मभावथी धर्मात्माने ओळखतां देवमूढता–गुरुमूढता टळे छे ने ते
ओळखाण पोताने जरूर सम्यकत्वनुं कारण थाय छे.
धर्मीनी प्रीति शेमां छे? –धर्मीनी प्रीतिनो विषय तो अनंत चैतन्यवैभवथी भरपूर आत्मा
ज छे, तेमां ज एमनी द्रष्टि छे, एमना स्वानुभवमां एनो ज स्वीकार छे, ईन्द्रपद के
शुभराग ए एमनी प्रीतिनो के एमना स्वानुभवनो विषय नथी. नानामां नाना
सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्मा होय तेमनी पण आवी ज अंर्तदशा होय छे. एवी अंर्तदशाने ओळखे
त्यारे धर्मात्माने ओळख्या कहेवाय, ने त्यारे पोतामां पण भेदज्ञान थाय.
ज्ञानीनुं ज्ञान– ज्ञानीनुं ज्ञान आत्मामां तन्मयपणे उपजे छे, रागमां तन्मयपणे उपजतुं
नथी; एटले ते ज्ञानने रागनी साथे कर्ताकर्मपणुं नथी. ज्ञानीनुं ते ज्ञान रागनुं अकर्ता छे.
कर्तानी शोध क््यां करवी? –कोई पण पर्यायना कर्ताने तारे शोधवो होय तो, ते पर्यायने
कोनी साथे अनन्यपणुं छे–ते शोधी ले.....जेनी साथे अनन्यपणुं होय तेनी साथे ज कर्ता–
कर्मपणुं छे, बीजा कोई साथे नहीं.