: ४० : आत्मधर्म : कारतक : २४९४
(८४) चाल्युं आवतुं वैर आजे निर्मूळ कराय तो उत्तम; कारण, वैर करी केटला काळनुं सुख
भोगववुं छे?
(८प) प्रज्ञाए करी सरळता सेवाई होय तो आजनो दिवस सर्वोत्तम छे.
(८६) प्रमाद अने लोकपद्धतिमां काळ सर्वथा वृथा करवो ते मुमुक्षु जीवनुं लक्षण नथी. (८४२)
(८७) अनंतकाळथी पोताने पोता विषेनी ज भ्रांति रही छे, –आ एक अवाच्य अद्भुत
विचारणानुं स्थळ छे.
(८८) ज्ञानीने एक रूपियाथी मांडी सुवर्ण ईत्यादि पदार्थमां साव माटीपणुं ज भासे छे.
(६८८)
(८९) महापुरुषनां आचरण जोवा करतां तेमनुं अंतःकरण जोवुं ए वधारे परीक्षा छे. (२१)
(९०) ‘सत्पुरुषमां ज परमेश्वरबुद्धि’ एने ज्ञानीओए परमधर्म कह्यो छे. (२प४)
(९१) महात्माना जोगे तेना अलौकिक स्वरूपने ओळखवुं, ओळखवानी परम तीव्रता राखवी,
तो ओळखाशे. मुमुक्षुनां नेत्रो महात्माने ओळखी ल्ये छे. (२प४)
(९२) मोटा पुरुषना संगमां निवास छे तेने अमे परम सत्संग कहीए छीए, कारण एना जेवुं
कोई हितस्वी साधन आ जगतमां अमे जोयुं नथी, अने सांभळ्युं नथी. (२४९)
(९३) बधा काळमां तेनुं (सत्संगनुं) दुर्लभपणुं छे, अने आवा विषमकाळमां तेनुं अत्यंत
दुर्लभपणुं ज्ञानीपुरुषोए जाण्युं छे. (४४९)
(९४) असंग एवुं आत्मस्वरूप सत्संगने योगे सौथी सुलभपणे जाणवा योग्य छे. (६७८)
(९प) सत्संगनुं माहात्म्य सर्व ज्ञानीपुरुषोए अतिशय करी कह्युं छे–ते यथार्थ छे. (६६८)
(९६) जिज्ञासाबळ, विचारबळ, वैराग्यबळ, ध्यानबळ अने ज्ञानबळ वर्द्धमान थवाने अर्थे
जीवने तथारूप ज्ञानीपुरुषनो समागम विशेष करी उपासवा योग्य छे. (८प६)
(९७) परमार्थमार्गीनुं लक्षण ए छे के अपरमार्थने भजतां जीव बधा प्रकारे कायर थया करे, –
सुखे अथवा दुःखे. (४प९)
दुःखमां कायरपणुं कदापि बीजा जीवने पण संभवे छे, पण संसारसुखनी प्राप्तिमां पण
कायरपणुं, –ते सुखनुं अणगमवापणुं, नीरसपणुं परमार्थमार्गी पुरुषने होय छे.
(९८) अमने तो वास्तविक एवुं जे स्वरूप तेनी भक्ति; अने असंगता, ए प्रिय छे. (२१३)
(९९) अशरणतावाळा आ जगतने एक सत्पुरुष ज शरण छे. (२१३)
(१००) अमे एम ज जाणीए छीए के एक अंश शाताथी करीने पूर्ण कामना सुधीनी सर्व
समाधि, तेनुं सत्पुरुष ज कारण छे. (२१३)
जे कोई साचा अंतःकरणे सत्पुरुषनां वचनने ग्रहण करशे ते सत्यने पामशे. (७८१)
(बीजा जिज्ञासुओ तरफथी मळेला वचनामृतो हवे पछी अपाशे.)