मागशर २४९४ : आत्मधर्म : १७
विकल्पनुं कर्तृत्व क्यारे छूटे?
बाह्यलक्षमां रहीने, शुद्धस्वरूपनो विकल्प कर्या करे छे तेमां विकल्पनुं कर्तृत्व छूटतुं
नथी. जो शुद्धस्वरूपनी सन्मुख थाय तो तेनुं निर्विकल्पवेदन थाय छे ने त्यां विकल्पनुं
कर्तृत्व रहेतुं नथी.
स्वरूपसन्मुख थईने स्वरूपनो विचार ते तो ज्ञान छे, ने ज्ञान ते कांई विकल्प
नथी.
विकल्प साथे कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति क्यां सुधी छे? के शुद्धस्वरूपनी सन्मुख नथी थतो
ने पर्यायना लक्षे–‘हुं शुद्ध एवा विकल्पना वेदनमां’ अटके छे त्यांसुधी कर्ताकर्मनी
प्रवृत्तिरूप अज्ञान छे.
ते कर्ताकर्मनी प्रवृत्ति क्यारे छूटे?
के ज्ञानना बळे विकल्पथी जुदो पडीने “शुद्ध” नी सन्मुख थईने तेमां अभेद
परिणति करे, त्यां ते परिणतिमां विकल्प साथे कर्ताकर्मपणुं रहेतुं नथी; शुद्धस्वरूपना
आनंदनुं साक्षात् वेदन थयुं ते विकल्प वगरनुं छे. आवा वेदन वगर सम्यग्दर्शन थाय
नहीं, ने विकल्पनी कर्ताबुद्धि मटे नहीं. विकल्पना वेदनमां आकुळता छे, स्वरूपना वेदनमां
आनंद छे.
अज्ञानीने, ज्ञानसाथे एकपणे विकल्प ऊठे छे–विकल्प ते हुं एवा वेदनसहित
विकल्प ऊठे छे; विकल्पथी जुदुं वेदन तेने नथी. ने ज्ञान थया पछी ज्ञानीने विकल्प ऊठे ते
ज्ञानथी जुदापणे रहे छे, एकपणे नथी, ज्ञानना कार्यपणे नथी. ज्ञाननुं वेदन विकल्पथी जुदुं
ज छे. विकल्पना काळे ज ज्ञानीने तेनाथी जुदुं ज्ञानपरिणमन वर्ते छे.
जेना फळमां पूर्ण अतीन्द्रियआनंदनुं वेदन सदाकाळ थया करे, तेना कारणरूप
अतीन्द्रिय आनंदमय श्रद्धा–ज्ञान पण स्वभावना अंतरना आश्रये ज थाय छे, बीजुं कोई
साधन तेमां नथी. आत्माने अनुभव करे त्यारे ज विकल्पनी आकुळता वगरना सहज
आनंदनुं वेदन थाय छे, ने आवुं वेदन ते आत्मानुं साचुं वेदन छे. शुद्धात्माने ध्येय करीने
आवुं वेदन करे त्यारे जीव ‘तत्त्ववेदी’ थयो, सम्यग्द्रष्टि थयो, मोक्षमार्गी थयो.
(कलशटीका प्रवचन)