आत्मवस्तुने अनुभवमां लीधी त्यारे सिद्धदशानी साची ओळखाण थई.
सम्यग्दर्शनादि दीवडा प्रगटाव्या ने साची दीवाळी ऊजवी.
कर्युं छे. आवुं स्वाधीन स्वरूप ओळखीने, पोताना उपयोगने आत्मसन्मुख करतां ज्ञानज्योत
प्रगटे छे, मोक्षमार्ग प्रगटे छे. आवा मार्गे भगवान आजे मोक्ष पधार्या.
भगवान महावीर परमात्मा आजे संपूर्ण शुद्ध एवी आत्मदशाने पाम्या. तेनो आजे दिवस छे.
भगवानने सिद्धदशा आजे प्रगटी ते आनंदमय छे, तेथी आजे आनंदनो दिवस छे; तेनी
भावनानो दिवस छे. आत्माना आवा अतीन्द्रिय आनंदनुं स्वरूप लक्षमां ल्ये तो बीजे क््यांय
सुखबुद्धि रहे नहि; एटले परभावोथी पाछो वळीने ते आत्मा मोक्षना मार्गे चाल्यो. –तेणे
मोक्षनो उत्सव पोतामां कर्यो.
छे, ने मोक्षना मार्गे आववा मांगे छे, –ते एम जाणे छे के ज्ञानपिंड मारो आत्मा रागादिनो
कर्ता–भोक्ता नथी, आनंदनो ज कर्ता–भोक्ता छे. अरे, मारा ज्ञानमां आ दुःख शा? –आ
परभावना वेदन केवा? ज्ञानमां तो शांति अने आनंद होय, –आम विवेक करीने धर्मी जीव
पोताना ज्ञानने राग अने हर्षादिथी जुदुं अनुभवे छे. ए अनुभवमां आनंदनी साची मीठाश
छे; बाकी लाडु वगेरे तो अचेतन छे, तेमां आनंद केवो? तेमां क्यांय चेतनना किरणो नथी,
चेतनप्रकाश तेमां नथी, ज्ञानकिरणोथी झगमगतो आत्मा प्रकाशे छे, तेनो अनुभव कर तो तारा
आत्मामां सादि–अनंत सुखनुं वर्ष बेसे. ज्ञानदीवडा वगर साची दीवाळी केवी! ज्ञानदीवडा जेना
आत्मामां प्रगट्या ते आत्मा शोभी ऊठ्यो, तेणे खरी दीवाळी प्रगट करी.