मागशर २४९४ : आत्मधर्म : २१
सर्व साधनशक्तिसंपन्न आत्मा
सम्यक्त्व के केवळज्ञान माटे तेने बीजा साधननी जरूर नथी
अरे जीव! तारा साधननी ऊंडी तपास तारामां ज कर; ऊंडो
ऊतरीने जोतां तारुं साधन तने तारामां ज देखाशे. जेओ पोताना
साधनने बहारमां शोधे छे तेओ साधननी ऊंडी तपास करनारा
नथी पछी छीछरीबुद्धिवाळा छे. एटले के बाह्यद्रष्टिवाळा छे, जेओ
अंतरमां ऊतरीने शोध करे छे तेमने तो पोताना हितनुं साधन
पोतामां ज भासे छे; केमके कर्तानुं साधन पोताथी भिन्न होतुं नथी.
आत्माने जे ज्ञानमय निर्मळ पर्यायो परिणमे छे तेनुं साधन कोण? –तो कहे छे के
करण शक्तिवाळो आत्मा ज तेनुं उत्कृष्ट साधन छे. करण शक्ति वडे आत्मा पोते उत्कृष्ट
साधक थईने, पोते ज उत्कृष्ट साधन थईने पोताना वर्तमान निर्मळ भावने साधे छे.
एने माटे बहारमां बीजुं कोई साधन नथी. साधनारनुं खरूं साधन पोताथी अभिन्न
होय छे, जुदुं होतुं नथी.
समयसार गा. २९४मां अभेदसाधननी वात सरस समजावी छे. अहीं साधन
थवानी शक्ति बतावी छे; ने त्यां प्रज्ञाछीणीरूप साधन बताव्युं छे, एटले के साधनशक्तिनुं
कार्य बताव्युं छे. चैतन्यस्वभावने अवलंबतो उपयोग तो प्रज्ञा छे; चैतन्यने चेतनारी
अनुभवनारी ते भगवती प्रज्ञा वडे, आत्मा अने बंध ए बंनेना चोक्कस लक्षणो जाणीने
तेमने जुदा कर्या, –भेदज्ञान कर्युं. ते अंतर्मुख उपयोगरूप प्रज्ञाने ज साधन बनावीने तेना
वडे शुद्धात्मानुं ग्रहण थाय छे. आ रीते आत्माथी अभिन्न एवी प्रज्ञा ज शुद्धात्माना
अनुभवनुं साधन छे; बीजुं कोई भिन्न साधन नथी.
गुण–गुणीभेदरूप जे अंदरनो ऊंचो व्यवहार तेना द्वारा पण परमार्थ सधातो
नथी, तो बीजा बाह्य रागनी शी वात? गाथा ३प६ थी ३६प नी टीकामां प्रश्न मुक््यो छे के
अंश–अंशीभेदरूप व्यवहारथी शुं साध्य छे? तेना उत्तरमां आचार्यदेव कहे छे के तेनाथी
कांई ज साध्य नथी. भेदद्वारा अभेद साध्य छे एम न कह्युं, व्यवहार वडे निश्चय साध्य छे
एम आचार्यदेवे न कह्युं; पण तेनाथी कांई ज साध्य नथी एम