राग ते मोक्षमार्ग नथी. धर्मी जाणे छे के मारो आत्मा पोते ज साधन थईने
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपे परिणमे छे. जोके हुं कर्ता, हुं साधन–एवा भेदने ते
अवलंबतो नथी पण अभेदअनुभूतिमां छए कारको भेगा समाई जाय छे. ज्ञान साथे
अभिन्न छए कारको परिणमी रह्या छे.
साध्यनी सिद्धि थती नथी. व्यवहार ते साधक अने निश्चय ते साध्य–एम कहेवामां आवे
छे ते उपचारथी छे. वर्तमान वर्तती निर्मळ पर्यायनो उत्कृष्ट साधक थईने आत्मा ज
तेने करे छे. साधक पोते, साधन पोतामां ने साध्य पण पोतामां. ज्ञानलक्षणथी लक्षित
आत्मामां ए बधुंय भर्युं छे.
एटले के रागने अने शुद्धताने भिन्न भिन्न ओळखाववा एम कहेवाय छे के छठ्ठानी
शुद्धता ते सातमानुं खरेखर साधन छे. –एटले के तेनी साथेनो राग ते खरूं साधन
नथी.
पोते ज साधनपणे परिणम्यो छे, एम अभेद साधन बताव्युं छे. करणशक्तिने लीधे
आत्मा ज पोतानी सर्व पर्यायोनो साधकतम छे, पोते ज साधन छे. ‘साधकतम’ कहेतां
ते एक ज साधन छे ने बीजुं साधन नथी. बीजुं साधन कहेवुं ते व्यवहार छे.
होय ते बीजा पासे मांगे. पण अहीं तो बधुंय साधन पोतानी पासे छे ज. तेनुं
अवलंबन ले एटली ज वार छे. ईन्द्रियो तारुं साधन नहि, निमित्तो साधन नहि,
विकल्पो साधन नहि, भेदरूप व्यवहार साधन नहि; छतां ए बधाने साधन