Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 27 of 45

background image
२४ : आत्मधर्म : मागशर २४९४
तरीके वर्णव्या होय तो ते उपचारथी ज छे एम जाणवुं, ने पोतानो शुद्धआत्मा परमार्थ
साधन छे–ते सत्यार्थ छे एम जाणवुं.
तीर्थंकरप्रभुना पंचकल्याणक वगेरे विभूतिनुं दर्शन ते सम्यक्त्वनुं कारण छे–एनुं
शास्त्रमां घणुं वर्णन आवे छे, पण अंदरमां साधनशक्तिवाळा आत्माने लक्षमां राखीने
ए बधुं समजवुं जोईए. अंदरमां निजात्मानुं लक्ष जेने नथी तेने बहारना साधनो
उपचारथी पण सम्यक्त्वनुं साधन थता नथी. उपचार पण खरेखर त्यारे लागु पडे के
ज्यारे अंदरमां पोताने परमार्थनुं लक्ष होय. जो उपचारने ज परमार्थ मानी ल्ये ने
साचा परमार्थने भूली जाय तो तो ते यथार्थवस्तुने क्यांथी साधी शके? भाई, आ तो
वीतरागी जिनमार्ग छे, एनां रहस्यो ऊंडां छे. पोताना स्वभावना भरोसा वगर
जिनमार्गमां एक पगलुंय चलाशे नहीं.
आत्मशक्तिमां जे ताकात भरी छे तेना भरोसे शुद्धता प्रगटे छे. विश्वासे वहाण
तरे, –कोनो विश्वास? के पोताना आत्माना वैभवनो विश्वास. मारामां करणशक्ति छे
एटले हुं ज साधन छुं, बीजा कोई साधननी मने जरूर नथी–एम निजस्वभावनो
विश्वास आवतां ते जीव पराश्रय छोडीने स्वाश्रये शुद्धतारूप परिणमे छे ने तेनुं वहाण
भवसमुद्रथी तरी जाय छे. जुओ, आ तरवानो उपाय! ते–ते समयना निर्मळभावरूपे
परिणमतो आत्मा स्वयं साधन छे. ज्ञानशक्ति वडे आत्मा पोते परिणमीने
केवळज्ञाननुं साधन थाय छे; आनंदशक्तिवडे आत्मा पोते साधन थईने अतीन्द्रिय
आनंदरूपे परिणमे छे; श्रद्धाशक्तिवडे आत्मा पोते साधन थईने क्षायिक सम्यक्त्वरूप
परिणमे छे. आम सर्वे गुणोमां पोतपोतानी निर्मळपर्यायनुं साधन थवानी ताकात छे.
समजाववा माटे जुदा जुदा गुणभेदथी वात करी, बाकी तो करणशक्तिवाळा
अभेदआत्मामां बधा गुण–पर्यायो समाई जाय छे. आवा अभेद आत्माने जाणवो–
मानवो–अनुभववो ते मोक्षमार्ग छे.
हे जीव! तारा आत्मामां केवी शक्ति छे तेने तुं जो, तो स्वकार्यने साधवा माटे
तारे कोई बीजानी मदद मागवी नहि पडे. आत्मानी जे करणशक्ति छे ते ज स्वकार्यने
साधनारी ईष्टदेवी छे, बीजी कोई देवीने धर्मीजीव स्वकार्यनुं साधन मानता नथी.
करणशक्तिरूपी देवीने उपासीने, एटले के करणशक्तिवाळा आत्माने ध्येयरूप बनावीने
धर्मी पोताना स्वकार्यने साधे छे.