छे ते परमाणुमां नथी, पण परमाणुमां जडता, वर्ण–गंध–रस–स्पर्श वगेरे स्वभावो छे.
दरेक पदार्थनी शक्ति ज तेना कार्यनी साधक छे. तेमांथी अहीं तो आत्मशक्तिना
अने तेनुं साधन, बंने वच्चे भेद नथी; खरेखर साधन ने साध्य वच्चे पण भेद नथी.
राग साधन ने निर्मळपर्याय साध्य–एवुं तो नथी, ने वर्तमान अधूरी पर्याय साधन ने
पूरी पर्याय तेनुं साध्य–एम पण खरेखर नथी. ते–ते पर्यायमां अभेद परिणमतो
आत्मा पोते ज तेनुं साधन छे, पोते ज साधक छे. करणशक्तिवडे आत्मा पोते
स्वतंत्रपणे पोतानुं साधन थाय छे.
तेनुं साधन कोण? शुं शरीरनुं मजबूत संहनन हतुं ते
न हतुं. शरीरने ध्याननुं साधन कहेवुं ते तो स्थूळ उपचार
छे. अंदर पोतानी करणशक्तिने लीधे आत्मा पोते ज
साधन थईने उपयोगनी स्थिरपर्यायरूपे परिणम्यो छे.
शरीरेय तेनुं साधन नथी ने विकल्पोय तेनुं साधन नथी.
वैभवनी वात छे; तेमां आत्मानी हीनतानी वात होय नहीं. जेम ‘भरतेशवैभव’
चैतन्यवैभवधारी आत्मा, तेने पोताना कार्य माटे शरीरादि जड साधननी जरूर पडे
एम कहेवुं ते तो तेनी हीनता करवा जेवुं छे. चैतन्यवैभवमां साधननी एवी खेंच नथी
के बीजा साधननी मदद लेवी पडे. ए तो स्वाधीनपणे पोताना ज साधन वडे पोतानुं
कार्य करनारो छे. पोते ज साधनस्वभावथी परिपूर्ण छे.