Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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मागशर २४९४ : आत्मधर्म : २५
दरेक वस्तुमां पोताना अनंत स्वभावोरूप अनंतशक्ति छे. जेम एकेक आत्मामां
अनंतशक्ति छे, तेम एकेक परमाणुमां पण अनंतशक्ति छे. आत्मामां ज्ञान–सुख वगेरे
छे ते परमाणुमां नथी, पण परमाणुमां जडता, वर्ण–गंध–रस–स्पर्श वगेरे स्वभावो छे.
दरेक पदार्थनी शक्ति ज तेना कार्यनी साधक छे. तेमांथी अहीं तो आत्मशक्तिना
वैभवनी वात छे. आत्मा पोते साधन थईने पोताना भावरूप कार्यने साधे छे. साधक
अने तेनुं साधन, बंने वच्चे भेद नथी; खरेखर साधन ने साध्य वच्चे पण भेद नथी.
राग साधन ने निर्मळपर्याय साध्य–एवुं तो नथी, ने वर्तमान अधूरी पर्याय साधन ने
पूरी पर्याय तेनुं साध्य–एम पण खरेखर नथी. ते–ते पर्यायमां अभेद परिणमतो
आत्मा पोते ज तेनुं साधन छे, पोते ज साधक छे. करणशक्तिवडे आत्मा पोते
स्वतंत्रपणे पोतानुं साधन थाय छे.
जुओ, आ बाहुबली भगवान! एक वर्ष सुधी
ऊभा ऊभा ध्यान कर्युं. तेमने उपयोगनी जे निर्मळता थई
तेनुं साधन कोण? शुं शरीरनुं मजबूत संहनन हतुं ते
अंदरना ध्याननुं साधन हतुं? –ना; शरीर उपर तो लक्षेय
न हतुं. शरीरने ध्याननुं साधन कहेवुं ते तो स्थूळ उपचार
छे. अंदर पोतानी करणशक्तिने लीधे आत्मा पोते ज
साधन थईने उपयोगनी स्थिरपर्यायरूपे परिणम्यो छे.
शरीरेय तेनुं साधन नथी ने विकल्पोय तेनुं साधन नथी.
शरीरनी जे जे क्रियाओ थाय तेनुं साधन थवानी
शक्ति तेना रजकणोमां ज छे, आत्मा तेनुं साधन थतो
नथी. जडना छ कारको जडमां, ने आत्माना छ कारको आत्मामां; आ तो आत्माना
वैभवनी वात छे; तेमां आत्मानी हीनतानी वात होय नहीं. जेम ‘भरतेशवैभव’
बताववो होय तेमां भरतनी हीनतानी वात केम आवे? तेम अनंतगुणसंपन्न
चैतन्यवैभवधारी आत्मा, तेने पोताना कार्य माटे शरीरादि जड साधननी जरूर पडे
एम कहेवुं ते तो तेनी हीनता करवा जेवुं छे. चैतन्यवैभवमां साधननी एवी खेंच नथी
के बीजा साधननी मदद लेवी पडे. ए तो स्वाधीनपणे पोताना ज साधन वडे पोतानुं
कार्य करनारो छे. पोते ज साधनस्वभावथी परिपूर्ण छे.