Atmadharma magazine - Ank 290
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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आत्मधर्म Regd. No. G. 182
वार्षिक सरवैयुं
सरवैयामां नफो के खोट?
• एक वेपारीए वार्षिक सरवैयुं काढ्युं: पांच लाखनी मूडीमां वर्ष दरमियान
वेपारमां एक लाखनो नफो थयो.
तेना एक सज्जन मित्रे कह्युं: भाई, सरवैयामां तमे एक रकम लखवी भूली
गया छो. वर्षमां एक लाखनो नफो तो तमे लख्यो, पण मोंघा जीवनमांथी एक
वर्षनी खोट गई– जीवननुं एक वर्ष उत्तम कार्य वगर ओछुं थई गयुं...तो
जीवनमां एकंदर लाभ थयो के खोट गई? ते सरवैयुं काढो. एक कोर एक लाख
रूपिया अने बीजी कोर जींदगीनुं अमूल्य आखुं वर्ष! शेमां नफो?
त्यारे वेपारीने समजायुं के–
“आत्माना हितने माटे जेटलुं जीवन वीते तेटलो ज नफो छे, ने बीजो तो
बधोय खोटनो वेपार छे. लाख रूा. मेळववा जींदगीनुं एक वर्ष आपी देवुं पडे
तेमां नफो नथी, पण खोट छे. माटे–
“निवृत्ति शीघ्रमेव धारी ते प्रवृत्ति बाळ तुं.”
शुं हजी तमे आत्मधर्मनुं लवाजम नथी भर्युं?
बे हजार उपरांत ग्राहकोए लवाजम भरी दीधुं ने तमे केम पाछळ रही
गया? आजे ज लवाजम भरो ने आत्मधर्मद्वारा घरमां धार्मिकसंस्कारोनी रेलमछेल
करो...
नीचेना सरनामे चार रूपिया मोकलो–
‘‘आत्मधर्म” – श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ (सौराष्ट्र)
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय सोनगढ