Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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:३८: आत्मधर्म : पोष : २४९४
गतांकना प्रश्नोना जवाब
(१) आ भरतभूमिमां ज्यारे श्रीकृष्ण अने पांडवो थया त्यारे भगवान नेमिनाथ तीर्थंकर
विचरता हता; नेमिनाथ अने श्रीकृष्ण बंने पीतराई भाई थाय. श्रेणीक राजा अने
जंबुस्वामीना वखतमां भगवान महावीर विचरता हता. भरतचक्रवर्तीना वखतमां
तेमना पिताजी भगवान ऋषभदेव विचरता हता.
(२) पोन्नूरमां जतां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव याद आवे छे; ते तेमनी तपोभूमि छे.
श्रवणबेलगोल (मैसुर) मां भगवान बाहुबलीनी सौथी मोटी प्रतिमा ईन्द्रगिरि पर्वत
उपर छे. सामेनी पहाडी उपर भगवान भद्रबाहुस्वामीनी गूफा छे. अयोध्यामां भगवान
आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनंदनस्वामी, सुमतिनाथ अने अनंतनाथ तीर्थंकरो, तथा
भरतचक्रवर्ती, बाहुबली अने रामचंद्रजी वगेरे जन्म्या छे. सम्मेदशिखरजीनी छेल्ली टूंकेथी
भगवान पारसनाथ मोक्ष पधार्या छे. पावापुरीथी भगवान महावीर मोक्ष पधार्या छे.
राजगृहीमां मुनिसुव्रतनाथ भगवानना चार कल्याणक तेमज वीरनाथनी दिव्यध्वनिनो
प्रारंभ थयेल छे. श्रेणीक राजा अने चेलणा राणी अहीं थया छे. भगवाननुं भक्त एक
देडकुं ते पण आ ज नगरीमां थयुं छे (तेनी वार्ता आ अंकमां तमे वांचशो) शौरीपुरमां
नेमिनाथ भगवान जन्म्या, तथा चार मुनिवरो (धन्य मुनि वगेरे) अहीं अंतकृत केवळी
थया छे. शत्रुंजय तो सोनगढमां ऊभाऊभा रोज देखाय छे त्यांथी त्रण पांडवभगवंतो
मोक्ष पाम्या छे. हस्तिनापुरमां शांतिनाथ–कुंथुनाथ–अरनाथ त्रण तीर्थंकरो (चक्रवर्ती)
थया. ऋषभदेवनुं वर्षीतपनुं पारणुं श्रेयांसकुमारे आ नगरीमां ज कराव्युं.
भरतचक्रवर्ती, रामचंद्रजी, ऋषभदेव, बाहुबली, अनंतनाथ, अजितनाथ, अभिनंदन
भगवान ने सुमतिनाथ ए बधाय अयोध्यामां थया छे.
कोयडानो जवाब:– चार अक्षरनुं नाम छे, जगजाहेर भगवान छे,
ए वीर प्रभुनुं बीजुं नाम ‘अतिवीर’ भगवान छे.
आ वखते नवा प्रश्नो पूछ्या नथी; परंतु पूंठा उपर छेल्ला पाने चार चित्रो छाप्या छे ते
क्यांना हशे? ए तमारे ओळखी काढवानुं छे. न ओळखी शको तो आवता अंकमांथी ओळखी
लेजो. नवा सभ्योना नाम, अने नवा प्रश्नो आगामी अंके आपीशुं.

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म :३९:
प्रश्नोना जवाब लखनार सभ्योना नंबर
२१प, ३९६, ८८२, ८८३, ८८४, ८८प, ३१८, १६९४ थी १६९८, ४११, ६६६, ६६७ ३९२, ८१२, २१८,
१, २, ३, ४, ३८४, ४३१, ४३२, ३७२, ३७३, ९८४, ९२७, ६२४, १७प४, १३प१, १९९प, १९९६, १९९७, ११प,
३३३, ३३४, ३३प, ३३६, प६६, पप०, ११७, ८०
गतांकमां पूछेली पांच वस्तुनी पूर्णता
(३१) (पांच समिति) ईर्यासमिति, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण, प्रतिष्ठापनसमिति
(३२) (पांच परावर्तन) द्रव्यपरावर्तन, क्षेत्रपरावर्तन, काळपरावर्तन, भावपरावर्तन, भवपरावर्तन
(३३) पांच हेयतत्त्वो; (छोडवा जेवा) अजीव, पुण्य, आस्त्र, बंध, पाप.
(३४) (पांच टूंक गीरनारनी) १–जिनमंदिर अने राजुलानी गुफा, २– अनिरूद्धटूंक, ३–शंबुकुमारनी टूंक, ४–प्रद्युम्ननी
टूंक, प–नेमिनाथ भगवाननी मोक्षटूंक
(३प) (पांच अक्षर परमेष्ठीना) ...सि.........सा
(३६) (पांच परमेष्ठीना प्रथम अक्षर “मां)............म्
(३७) (पांच लघुस्वर; अयोगीगुणस्थानना काळनुं माप) अ इ उ ऋ, लृ
नं. (३४) मां जणावेल शंबु अने प्रद्युम्न ए श्रीकृष्णना पुत्रो हता, तथा अनिरूद्ध ए प्रद्युम्नना पुत्र हता.
ते त्रणे गीरनार उपरथी मोक्ष पाम्या छे, त्रण टूंको उपर तेमनी चरणपादूका छे. पांचमीटूंक (जेने हिन्दु लोको
गुरुदत्तात्रयनी टूंक तरीके ओळखे छे) ते खरेखर नेमिनाथभगवानना मोक्षनी टूंक छे. ने त्यां जे पगलां छे ते
नेमिनाथप्रभुना छे. तेनी बाजुमां (जराक नीचे) पर्वतना मूळ पत्थरमां श्री नेमिनाथप्रभुनी मूर्ति कोतरेली छे.
सहेस्रावन (सहस्रआम्रवन) मां भगवाननी दीक्षा तथा केवळज्ञाननी उत्पत्ति थयेल छे–ते पण खास पूज्य स्थान छे.
त्यांनुं वातावरण घणुं ज उपशांत वैराग्यमय छे. गौमुखीगंगाना गोखलामां २४ तीर्थंकरोनां पगलां स्थापेला छे.
राजुलगूफाथी थोडे दूर चंद्रगूफा (जेमां धरसेन गुरु रहेता ते) छे–अत्यारे ते गूफाने गोरजीनी गूफा (एटले
के गुरुजीनी गूफा) तरीके त्यांना माणसो ओळखे छे.
भगवाननां दर्शन
(१) श्री भगवाननां दर्शन आपणे एटला माटे करीए छीए के, आपणे पण भगवान जेवा थवुं छे.
(२) आपणा आत्मामां पण भगवान थवानी शक्ति छे. जेवो भगवानना आत्मानो स्वभाव छे तेवो ज आपणा
आत्मानो स्वभाव छे.
(३) आ भगवानने पूरेपूरुं ज्ञान छे तेम आपणामां पण पूरेपूरो ज्ञानस्वभाव छे.
(४) आ भगवानने जराय रागद्वेष नथी, तेम आपणा आत्मस्वभावमां पण जराय राग–द्वेष नथी.
(प) भगवान जेवो पोतानो आत्मा छे–एवो विश्वास करवो तेनुं नाम सम्यग्दर्शन छे.

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:४०: आत्मधर्म : पोष : २४९४
विहारनो कार्यक्रम
(फागण सुद बीजे सोनगढ–जिनमंदिरनी वर्षगांठ
उजवीने बीजे दिवसे पू. गुरुदेव मंगल प्रस्थान
करशे. हालनो कार्यक्रम नीचे मुजब छे.)
लाठी. फा. सु. ३ शनिवार ता. २–३–६८
राजकोट फा. सु. ४ थी फा. व. १ ता. ३ थी १प
वडाल फा. व. २ ता. १६ (अहींथी गुरुदेव
गीरनारनी तळेटी दर्शनार्थे पधारशे.)
पोरबंदर फा. व. ३ थी फा. व. ११ ता. १७ थी २४
जेतपुर फा. व. १२ थी फा. व. ०) ता. २प थी २८
गोंडल चै. सु. १ थी चै. सु. ४ ता. २९ थी १
वडिया चै. सु. ४ (बीजी) थी चै. सु. ७ ता. २ थी प
एप्रील
मोरबी चै. सु. ८ थी चै. सु. ११ ता. ६ थी ९
वांकानेर चै. सु. १२ थी चै. सु. १प ता. १० थी १३
चोटीला चै. व. २ (वद १ नथी) ता. १४
सुरेन्द्रनगर चै. व. ३ थी चै. व. ६ ता. १प थी १८
वढवाण चै व. ७ थी चै. व. १० ता. १९ थी २२
जोरावरनगर चै. व. ११ थी चै. व. १३
ता. २३ थी २प
विंछीया चै. व १४ थी वै. सु. ६ ता. २६–४ थी ३–प
गुरुदेवनी ७९ मी जन्मजयंती विंछीया उजवाशे.
उमराळा वै. सु. ७–८ ता. ४–प
लींबडी वै. सु. ९ थी वै. सु. १४ ता. ६ थी ११
सोनगढ–प्रवेश वै. सु. १प रविवार ता. १२–प–६८
(वै. व. १, ता. १३–प–६८ सोमवारथी सोनगढमां
विद्यार्थीओना शिक्षणवर्गनो प्रारंभ थशे.)
वैराग्य समाचार

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: पोष : २४९४ आत्मधर्म :४१:
पुरुषार्थनी सफळता
केटलाक जीवो कहे छे के अमे सम्यग्दर्शन माटे पुरुषार्थ तो करीए छीए
(आवा सेंकडो आत्मार्थप्रेरक उत्तम न्यायो द्वारा आत्मवैभवनी प्राप्तिनो
सत्यपुरुषार्थ समजवा माटे ताजेतरमां प्रगट थनार (‘आत्मवैभव’ पुस्तक
अवश्य वांचो. पृ. ४८० उत्तमपुस्तक: मूल्य साडा त्रण रूपिया)
‘आत्मधर्म’ ना वांचनमां मशगुल
शेठश्री प्रेमचंदभाई.
जेमणे क्षणमात्रमां देह छोडी दीधो

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:४२: आत्मधर्म : पोष : २४९४
पू. गुरुदेव साथेनी तीर्थयात्राप्रसंगनां आ चार द्रश्यो केवा मजाना छे?
ते द्रश्यो क्यांना छे ते तमारे ओळखी काढवानुं छे.
श्री दिगंबर जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती प्रकाशक अने
मुद्रक: मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय: सोनगढ (प्रत: २प००)