Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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समयसारनो पहेलो पाठ



समयसारना पहेलां ज पाठमां आचार्यदेव कहे छे के
हे भव्य! तारा आत्मामां सिद्धपणुं स्थाप. सिद्ध
भगवंतोने आदर्शरूपे राखीने नक्क्ी कर के ‘जेवा
सिद्ध तेवो हुं. ’ –आवा लक्षपूर्वक समयसार सांभळतां
तने तारो अद्भुत आत्मवैभव तारामां देखाशे.
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी संपादक: ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २४९४ पोष (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २प: अंक ३