Atmadharma magazine - Ank 291
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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संपादकीय–
गुरुदेवनी प्रवचनशैलि
गुरुदेवनी प्रवचनशैली अनोखी छे; ते मुमुक्षु–श्रोताओने अंतरना
ऊंडाणमां लई जईने चैतन्यनो स्पर्श करावे छे. तेओ गमे ते शास्त्र वांचतां होय
पण आत्माने स्पर्शीने तेना भावो खोले छे...ने आत्मार्थीना पुरुषार्थने आत्मा
तरफ उत्तेजित करे छे. जैनसिद्धांतना चारे अनुयोगमां चैतन्यआत्मा झळकी रह्यो
छे; द्रव्यानुयोग अने करणानुयोगनी जेम चरणानुयोगमां पण आत्मा झळके छे
ने कथानुयोगमां पण आत्मसाधनानी ज कथाओ गुंथायेली छे. आत्माने
एककोर राखीने जैनसिद्धान्तनो कोई पण अनुयोग होई शके नहि. आ रीते
चारे अनुयोगमां आत्मा भरेलो छे. ज्ञानीओ बधा अनुयोगोमां आत्मानी
महत्ता देखे छे. गुरुदेवनुं प्रवचन आपणने शास्त्रोमां रहेला सन्तोना हार्द सुधी
पहोंचाडीने चिदानंदतत्त्वना द्वार सुधी लई जईने कोई अलौकिक दर्शननी झांखी
करावे छे. गुरुदेवना सर्वतोमुखी प्रवचनोनी थोडी झांखी आत्मधर्मना हजारो
वांचको दर महिने करी रह्या छे....आप पण आत्मधर्म मंगावीने तेनुं रसस्वादन
करो....एनाथी आपना जीवनमां कोई नवीन तत्त्व उमेराशे.
आत्मधर्म मंगाववा माटे नीचेना सरनामे चार रूपिया मोकले–
आत्मधर्म कार्यालय, सोनगढ (सौराष्ट्र)