Atmadharma magazine - Ank 292
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: महा : र४९४ आत्मधर्म : १७ :
सिद्धत्वना हेतुभूत भावना
भगवानश्री यतिवृषभआचार्यरचित ‘त्रिलोकप्रज्ञप्ति’ नामना प्राचीन
महान ग्रंथमां नव अधिकारो द्वारा त्रणलोकनुं वर्णन छे, तेमां नीचे नरकथी मांडीने
उपर ठेठ सिद्धलोक सुधीनुं घणा प्रकारे वर्णन कर्युं छे. तेमां सौथी छेल्ला (नवमा)
अधिकारनुं नाम
‘सिद्धलोकप्रज्ञप्ति’ महाअधिकार छे. आ अधिकारमां सिद्ध
संबंधी पांच पेटा अधिकार छे: (१) सिद्धभगवंतोनी निवासभूमि. (र)
सिद्धभगवंतोनी संख्या, (३) सिद्धभगवंतोनी अवगाहना अने (४)
सिद्धभगवंतोनुं सुख–ए चार वात १७ गाथाद्वारा बतावी छे, अने पछी
“सिद्धत्वना हेतुभूत भाव” नुं आनंदकारी वर्णन पांचमा अधिकारमां ४८
गाथाद्वारा कर्युं छे. त्रिलोकप्रज्ञप्ति जेवा करणानुयोगना ग्रंथमां पण सिद्धत्वना
हेतुभूत आवी उत्तम भावना वांचीने गुरुदेवने घणो प्रमोद थयो हतो ने
श्रोताजनो समक्ष पण तेनुं वर्णन कर्युं हतुं–जे सांभळीने सौने हर्षोल्लास थयो
हतो. –सिद्धत्वना हेतुभूत भावनाथी कोने आनंद न थाय? –तेथी ते आनंदकारी
भावना अहीं आपीए छीए.
आ शास्त्रकर्ता श्री यतिवृषभआचार्य धवला–जयधवलाना टीकाकारथी पण
प्राचीन छे. अने आ भावना–अधिकारमां आवेली घणीखरी गाथाओ भगवानश्री
कुंदकुंदाचार्यदेवना समयसार–प्रवचनसार वगेरे शास्त्रोनी गाथाओने लगभग
मळती आवे छे–जाणे के तेमना शास्त्रोनुं दोहन करीने ज आ भावना–अधिकार
रचायो होय एवुं ज लागे छे. प्रो. हीरालालजी जैन आ संबंधमां लखे छे के–‘आ
अन्तिम अधिकारमां वर्णवेल सिद्धोनुं वर्णन अने आत्मचिन्तननो उपाय (–
शुद्धात्मभावना) ते जैनविचारधारानी प्राचीन सम्पत्ति छे. ’ चालो, आपणे पण
आपणा आत्माने सिद्धत्वना हेतुभूत आ भावनामां जोडीए:–
(त्रिलोकप्रज्ञप्ति अधिकार ९, गाथा १८ थी ६प)
(१८) जेम चिरसंचित ईंधनने पवनथी प्रज्वलित अग्नि शीघ्र ज जलावी दे छे, तेम घणा
कर्मरूपी ईंधनने ध्यानरूपी अग्नि क्षणमात्रमां जलावी दे छे.