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उपर ठेठ सिद्धलोक सुधीनुं घणा प्रकारे वर्णन कर्युं छे. तेमां सौथी छेल्ला (नवमा)
अधिकारनुं नाम
सिद्धभगवंतोनी संख्या, (३) सिद्धभगवंतोनी अवगाहना अने (४)
सिद्धभगवंतोनुं सुख–ए चार वात १७ गाथाद्वारा बतावी छे, अने पछी
“सिद्धत्वना हेतुभूत भाव” नुं आनंदकारी वर्णन पांचमा अधिकारमां ४८
गाथाद्वारा कर्युं छे. त्रिलोकप्रज्ञप्ति जेवा करणानुयोगना ग्रंथमां पण सिद्धत्वना
हेतुभूत आवी उत्तम भावना वांचीने गुरुदेवने घणो प्रमोद थयो हतो ने
श्रोताजनो समक्ष पण तेनुं वर्णन कर्युं हतुं–जे सांभळीने सौने हर्षोल्लास थयो
हतो. –सिद्धत्वना हेतुभूत भावनाथी कोने आनंद न थाय? –तेथी ते आनंदकारी
भावना अहीं आपीए छीए.
कुंदकुंदाचार्यदेवना समयसार–प्रवचनसार वगेरे शास्त्रोनी गाथाओने लगभग
मळती आवे छे–जाणे के तेमना शास्त्रोनुं दोहन करीने ज आ भावना–अधिकार
रचायो होय एवुं ज लागे छे. प्रो. हीरालालजी जैन आ संबंधमां लखे छे के–‘आ
अन्तिम अधिकारमां वर्णवेल सिद्धोनुं वर्णन अने आत्मचिन्तननो उपाय (–
शुद्धात्मभावना) ते जैनविचारधारानी प्राचीन सम्पत्ति छे. ’ चालो, आपणे पण
आपणा आत्माने सिद्धत्वना हेतुभूत आ भावनामां जोडीए:–