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नथी, ते लडाईमां दुश्मन सामे केवी रीते ऊभो रहेशे? जीवनमां जेणे अभ्यास कर्यो हशे तेने
खरे टाणे काम आवशे. माटे निरंतर प्रमाद छोडी द्रढ वैराग्यपूर्वक आत्मानी भावना भावजे.
विशुद्धभावथी उत्तम बोधनुं सेवन करजे...एवी द्रढ भावना करजे के केवळज्ञान सुधी अखंड रहे.
अरे जीव! भेदज्ञान करीने तारा ज्ञानने अंतरमां ढाळजे! वारंवार ज्ञानने अंतरमां एकाग्र
करवानो अभ्यास करजे..रोमेरोमे एटले के आत्मामां प्रदेशे प्रदेशे–ज्ञाननुं परिणमन थई जाय–
एवो द्रढ अभ्यास करजे. विषयो तरफनी वृत्ति तोडीने चैतन्यनो रस एवो वधारजे के स्वप्नेय
के प्राण जाय एवा प्रसंगे पण तेमां शिथिलता न थाय, ने धारावाही ज्ञान टकी रहे. –आम द्रढ
ज्ञानभावनो उपदेश छे.
वीतरागमार्गी सन्तोए पोताना अनुभवमां लईने ए वात प्रसिद्ध करी छे.
हित करवा माटे पोतानुं द्रव्य केवुं? गुण केवा? ने तेना आश्रये पर्याय प्रगटे
छे ते केवी छे–ते जाणवुं जोईए.