वगेरे साडात्रण करोड मुनिवरो सिद्धि पाम्या होवाथी ते सिद्धिधाम छे; ते उपरांत पर्वतमां ज कोतरेली
बावनगज (७८ फूट जेटली) ऊंची, भगवान ऋषभदेवनी मूर्तिने लीधे आ तीर्थं ‘बावनगजातीर्थ’
तरीके पण प्रसिद्ध छे. अने कुंदकुंदाचार्यदेवनी आ प्रतिमा ते आ चूलगिरिनी त्रीजी विशेषता छे.
लगभग त्रण फूटनी देरीमां दोढ फूटनी मूर्ति छे. आम तो नानकडी देरीमां आवी त्रण प्रतिमाओ छे, जे
खूब जुनी घसाई गयेली छे. सामान्यपणे मुनिनी मूर्ति ध्यानस्थ होय छे; पण अहीं, कुंदकुंदप्रभुए
विदेहक्षेत्रना तीर्थंकर पासे जईने साक्षात् वंदना करी हती ते पावन ऐतिहासिक प्रसंगनी यादीसूचक
आ प्रतिमा पूर्वदिशासन्मुख हाथ जोडीने वंदना करी रहेल छे. पग पासे कमंडल ने हाथमां मोरपींछी
देखाय छे. गुरुदेव सहित सेंकडो यात्रिकोए सं. र०१३ मां ज्यारे आ कुंदकुंदप्रभुनी प्रतिमाना दर्शन
कर्या त्यारे सौने घणो ज आहलाद थयो हतो. आपणा सोनगढना समवसरणमां जे कुंदकुंदप्रभुनी
प्रतिमा छे ते पण लगभग एवी ज छे. (विशेष वर्णन माटे मंगलतीर्थयात्रा पुस्तक पृ. पप थी ६८
वांचो.)
करीने चढी गया हशे!! पण ए तो कुंदकुंदप्रभुजीनुं धाम...ने एमना हृदयनी भक्ति!! अने वळी
गुरुदेव साथेनी यात्रानो प्रसंग!! एटले उमंगमां ने उमंगमां डोळीनी राह जोया वगर एमणे तो
चडवा मांड्युं. पोन्नूर पहाड उपर! ने थोडीवारमां पहोंची गया. कुंदकुंदप्रभुजीना चरणोनी समीपमां.
ठेठ पर्वत उपर पहोंचीने जरा वार थाक खावा बेठा छे...ए प्रसंगनुं आ मधुर द्रश्य छे.
अहीं ध्यान करता हता. “वे गुरु चरण जहां धरे, जगमें तीरथ तेह” एनुं साक्षात् उदाहरण आ पर्वत
छे. चरणपादूका उपर चंपानुं वृक्ष नजरे पडे छे. गुरुदेवे संघसहित महान उल्लासथी बे वार आ
तीर्थनी यात्रा करी छे.
बेनश्री–बेन बेठेला छे. कुंथलगिरिथी देशभूषण अने कुलभूषण मुनि मोक्ष पाम्या छे. बे दिवसमां संघे
त्रण वखत आ रळियामणा तीर्थनी घणी उल्लासभरी यात्रा करी. (तेनुं आनंदकारी वर्णन वांचवा
माटे जुओ आत्मधर्म अंक १८९)