: महा : र४९४ आत्मधर्म : ३९ :
माताना मंगल–आशीर्वाद
उत्तमकाळमां आदर्श माताओ पारणामांथी पण पोतानां बाळकोने धार्मिक संस्कारोनुं
सींचन करती...घरे घरे “शुद्धोसि...बुद्धोसि” ...नां हालरडां गवातां. माता पोताना पुत्रने
धर्मात्माओनी जीवनकथा कहेती, बाळपणथी ज मुनिओना गुणगान संभळावती...मुनिवरोनुं
आनंदमय जीवन समजावीने बाळकना हृदयमां तेनां बीजडां रोपती.
ज्यारे बाळक मोटो थयो–आठदश वर्षनो, त्यारे एकवार माताए हसतां–हसतां तेने
पूछयुं: बेटा! तारे मुनि थवुं छे?
ते सांभळतां बाळक उत्साहथी बोली ऊठ्यो: बा! आशीर्वाद आप, के हुं मुनिदशा पामुं!
माता:– अहो पुत्र! धन्य छे ए मुनिदशा! मारो पुत्र मुनिदशा पामे तो हुं मारी कुंखने धन्य
समजुं छुं. बेटा! तारी पहेलांं त्रण त्रण सुभागी पुत्रोए मुनि थईने आ मातानी
कुंखने शोभावी छे. तेम तुं पण तारा मुनि–बंधुओनो अनुगामी था...अने मारी कुंखने
शोभाव–एवा मारा आशीर्वाद छे.
पूत्र:– धन्य छे माता... तारा जेवी धर्मवत्सला माताओथी ज आ पृथ्वी शोभी रही छे. पोते ज
पोताना पुत्रने वैराग्यमार्गमां दोरे एवी जनेता आ जगतमां बहु विरल छे. माता!
तारा पवित्र आशीर्वादने हुं ‘आजे ज’ झीलीश.
माता:– पुत्र धन्य छे तने! मारा जेवी मातानी कुंखे अवतार लईने मारो पुत्र संसारमां रूले ए
हुं केम जोई शकुं? मारा पुत्रने संसारनी जेलमां हुं केम देखी शकुं? वत्स! शीघ्र
संसारबंधनने तोडीने तुं मुक्तिमार्गे संचर. तने मारा जेवी माता मळी अने हवे तारे
बीजी माता धारण करवी पडे तो तो मारी कुंख लजवाय.
पुत्र:– नहि, नहि, माता! हुं तारी कुंख नहि लजवाउं...माता तुं मारी छेल्ली माता छो...हवे
बीजी माता नहि करुं. माता, तारी पावनकुंख मुक्तिगामी पुत्रने ज अवतार देनार छे.
हुं आ ज भवे मोक्ष पामीने तारी कुंख उजवाळीश–ते माटे अंतरमां जोयेलो जे
स्वानुभूतिनो मार्ग तेने साधवा आजे ज हुं जाउं छुं.
(आदर्श माता–पूत्रनो संवाद अहीं रजु कर्यो छे...आजेय हजारो
बाळकोने एमनी माताओ एवा आदर्श जीवनने भावे छे; केटलीये
माताओ होंशेहोंशे पोताना बाळकने आत्महितना उत्तम संस्कारोनुं
सींचन करी रही छे. धन्य छे ते माताओने.. धन्य छे ते पुत्रोने.)