Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : फागण : २४९४ :
शिलालेख नं. ४० के जे शक सं. १०८५मां (एटले के लगभग ८०० वर्ष
पहेलां) कोतरायेलो छे तेमां नीचे मुजब उल्लेख छे––
यो देवनन्दि प्रथमाभिधानो, बुध्यामहत्या स जिनेन्द्रबुद्धिः।
श्री पूज्यपादोजनि देवताभिः यत्पूजितं पादयुगं यदीयम्।।
प्रथम जेनुं नाम ‘देवनन्दी’ हतुं, बुद्धिनी महत्ताथी तेओ ‘जिनेन्द्रबुद्धि’
कहेवाया, अने देवताओ वडे तेमना पादयुग पूजित थया तेथी तेओ ‘पूज्यपाद’
नामथी प्रसिद्ध थया.
आवा ज आशयनो बीजो एक शिलालेख (नं. १०५) शक सं. १३२० नो छे.
श्रवणबेलगोलनो चंद्रगिरि पहाड १०८ नंबरना शिलालेख द्वारा बोले छे के श्री
पूज्यपादे धर्मराज्यनो उद्धार कर्यो, देवोना अधिपतिओए तेमनुं पादपूजन कर्युं तेथी
तेओ ‘पूज्यपाद’ कहेवाया; तेमना द्वारा उद्धार पामेलां शास्त्रो आजे पण तेमना
विद्याविशारद गुणोनुं कीर्तिगान करे छे; तेओ जिनवत् विश्वबुद्धिना धारक (समस्त
विद्यामां पारंगत) हता, तेमणे कामने जीत्यो हतो तेथी उत्तम योगीओए तेमने
‘जिनेन्द्रबुद्धि’ कह्या छे.
वळी ए ज शिलालेखना बीजा श्लोक द्वारा पर्वत आपणने तेमना
विदेहगमननी आनंदकारी वात पण संभळावे छे––
श्री पूज्यपादमुनिरप्रतिमौषर्द्धिः जीयात् विदेहजिनदर्शनपूतगात्रः।
यत्पादधौतजलसंस्पर्शप्रभावात् कालायसं किल तदा कनकीयकार।।
श्री पूज्यपादमुनि जयवंत वर्तो के जेओ अप्रतिम औषधिऋद्धिना धारक हता,
विदेही जिनना दर्शनवडे जेमनुं गात्र पावन थयुं हतुं, अने जेमना पगधोयेला पाणीना
स्पर्शना प्रभावथी लोढुं पण सुवर्ण बन्युं हतुं.
भिन्नभिन्न आचार्योना महिमाने प्रसिद्ध करनारा आवा तो सेंकडो शिलालेखो
अने हजारो श्लोको पहाड उपर अंकित छे. शिलालेखोना जे क्रमनंबर अपायेला छे
तेना उपरथी ज तेनी विपुल संख्यानो ख्याल आवे छे. ए शिलालेखोनो परिचय
‘आत्मधर्म’ना पाठकोने कोईवार करावीशुं. अत्यारे तो कुंदकुंदप्रभुना महिमा संबंधी बे
शिलालेखो–जेमांथी एक चंद्रगिरि पर अने बीजो विंध्यगिरि अर्थात् ईंद्रगिरि उपर––
(एटले के ज्यां बाहुबली भगवाननी गगनचूंबी मूर्ति छे ते पर्वत उपर)
शिलास्थंभमां कोतरेला छे तेनो उल्लेख करीने आ टूंको लेख समाप्त करीशुं––