Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९४ : आत्मधर्म : १७ :
* पहाड बोले छे *
ईन्द्रगिरि श्रवण
पर्वत बेलगोल
भारतमां केटलाय एवा पर्वतो छे के जे सेंकडो हजारो वर्ष पूर्वे आ
भरतभूमिमां विचरता वितरागी सन्तोना पवित्र पदार्पणथी पावन थयेला छे. ए
वीतरागी सन्तोना स्पर्शनथी ते पहाडो तीर्थ बनी गया छे...अने त्यां विचरेला
सन्तोनी आत्मसाधनानी साक्षी आजे पण आपी रह्या छे.
भारतनो दक्षिणप्रदेश एटले तो, भद्रबाहुस्वामी, कार्तिकस्वामी, कुंदकुंदस्वामी ने
समन्तभद्रस्वामी तथा नेमिचंद सिद्धान्तचक्रवर्ती जेवा मोटा मोटा मुनिवरोनी
विहारभूमि! दिगंबरसन्तो ए भूमिमां खूब विचर्या छे. दक्षिणनुं एवुं एक धाम
श्रवणबेलगोला–के जे विश्वप्रसिद्ध बाहुबलीभगवाननी भव्योन्नत प्रतिमाने कारणे वधु
प्रख्यात छे, त्यां ईन्द्रगिरि अने चंद्रगिरि एवा बे पहाडो सामसामे जाणे वीतरागतानी
वातो करता ऊभा छे. आ बंने पर्वत एटले जाणे बोलता पहाड! बंने पर्वत उपर
महान मुनिवरोनी प्रशस्तिना केटलाय शिलालेखो कोतरेला छे; पर्वतनी मूळ जमीननो
केटलोक भाग पण शिलालेखोथी छवायेलो छे. अहा! जाणे के पर्वतना हृदयमां ए
मुनिवरोनां गुणगान कोतराई गया होय! ने ए अक्षरो द्वारा जाणे ते पहाड आजे
आपणने ए गुणगाथा संभळावी रह्यो होय! केटलाय ऐतिहासिक प्रसंगो ए
शिलालेखोमां भरेला छे. कुंदकुंदप्रभुजी वगेरे संतोनी अनेक गौरवभरी वात पण ए
शिलालेखो द्वारा पर्वत आपणने संभळावी रह्यो छे...(समयसारमां एवा बे शिलालेख
छपाया छे.) पूज्यपादस्वामीना महिमा संबंधी पण अनेक शिलालेखो ते पर्वत उपर
कोतरेला छे. तेमांथी केटलाक आपणे जोईए––