Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : फागण : २४९४ :
शुभचंद्राचार्ये पण तेमनुं स्मरण करीने नमस्कार कर्या छे. तेमणे ‘ईष्टोपदेश’ शास्त्र
पण रच्युं छे; तेमणे रचेली ‘
सिद्धभक्ति’–जेमां मात्र ९ श्लोक छे छतां घणा गंभीर
अर्थोथी भरेली छे अने सिद्धना सुख वगेरेनुं स्वरूप तथा सिद्धिनी प्राप्तिनो मार्ग सुंदर
शैलीथी बताव्यो छे, ते टूंकामां घणुं भरी देवानी तेमनी अगाधशक्ति सूचवे छे. आ
उपरांत तेमने अनेक ऋद्धि–लब्धिओ होवानुं पण मानवामां आवे छे. आवा समर्थ
अध्यात्ममस्त सन्तद्वारा आ समाधिशतक रचायुं छे; श्री प्रभाचंद्रस्वामीए तेनी सुगम
टीका संस्कृतमां करी छे. शास्त्रमां वारंवार भेदज्ञाननी भावना घूंटी छे ने आत्माने
समाधि–सुख थाय तेवो उपदेश कर्यो छे.
आवा आ शास्त्र उपर वैशाख वद एकमथी शरू थयेल व्याख्यान आजे श्रावण
सुद पूर्णिमाए (वीर सं. २४८२ मां) वात्सल्यना दिवसे समाप्त थाय छे; ते
भव्यजीवोने आत्मिकसुखरूप परम समाधि आपो.
जिनके भक्ति–प्रसादसे पूर्ण हुआ व्याख्यान,
सबके उरमंदिर वसो पूज्यपाद भगवान.
पढो सुनो सब ग्रन्थ यह, सेवो अति हित मान,
आत्म–समुन्नति बीज जो करो जगत कल्याण.
(लेखकनी प्रशस्ति:) पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामीए वीर सं. २४८२मां
समाधिशतक उपर प्रवचनो कर्या, तेना श्रवण वखते जाणे उपशांत–अध्यात्मरसनुं
झरणुं वहेतुं होय–एवी शांति थती हती...अत्यंत सुगम शैली, वारंवार अंतर्मुखी
आत्मभावनानुं घोलन, वैराग्यझरता शांतशांत मधुर भावो, ए बधाथी भरपूर
प्रवचनो तत्क्षण ज संसारना सर्व संकलेशोने शमावीने अंतरमां चैतन्यशांतिना
मधुरा वातावरणमां आत्माने लई जता हता. आवा अत्यंत सुगम वैराग्यरसभीनां
आत्माभिमुखी प्रवचनो सर्व जिज्ञासुओने महान उपकारी होवाथी ‘आत्मधर्म’मां
तेनो सार आपवानुं ११ वर्ष पहेलां (अंक १५८ थी) शरू करेल, ते आजे आ
अंकमां समाप्त थाय छे. वीतरागीसन्तोनुं हार्द खोलीखोलीने अने आत्मिकरसनुं
सींचन करी करीने आ प्रवचनो द्वारा समाधिना हेतुभूत एवुं परम आत्मज्ञान
गुरुदेवे समजाव्युं छे, बहिरात्मभाव छोडवानी ने अंतरात्मभाव जागृत करवानी
वारंवार प्रेरणा आपी छे... आवा बोधिसमाधिदातार पू. गुरुदेवना मंगलचरणोमां
नमस्कार
हो. –ब्र. हरिलाल जैन