Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४९४ : आत्मधर्म : २१ :
पिता – पुत्र वच्चेनो वादविाद
मथाळुं वांचीने भडकशो नहीं हो...अत्यारना कोई झगडानी वात
नथी...ए पिता तो छे भरतचक्रवर्ती; अने पुत्रो छे तेमना १२००
कुमारो–मधुराज, विधुराज, पुरुराज वगेरे. भरतचक्रवर्ती चरमशरीरी
सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा छे,–तो तेमना पुत्रो पण कांई तेमनाथी उतरे एवा
नथी, गमे तेम तो तेओ ऋषभदादाना पौत्रो छेने! तेओ पण
चरमशरीरी सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा छे. ‘व्यवहाररत्नत्रयथी सिद्धि छे के
निश्चयरत्नत्रयथी?’–ते बाबतमां पिता–पुत्रो वच्चे तत्वचर्चा थाय छे.
भरतेशवैभवमां ए प्रसंगनुं मजानुं वर्णन आवे छे; ते वांचीने गुरुदेवने
गम्युं...तेथी ते प्रसंग अहीं आपवामां आव्यो छे. आपणा बालसभ्योने
तत्त्वअभ्यास माटे ते खास प्रेरणाकारी छे.
आ प्रसंग जो के वीसेक वर्ष पहेलां ‘आत्मधर्म’मां आवी गयो
छे. पण आपणा बालसभ्योमांथी घणाय तो ते वखते पूर्व भवमां हता;
एटले एमना पूर्वभव वखते आत्मधर्ममां आवेल वातनी तेमने क्यांथी
खबर होय? तेथी तेमने माटे आ लेख फरी अहीं आप्यो छे. (सं.)
हंमेशनी जेम सम्राट भरत महेलमां बेठा छे. पासे नमिराज, विनमिराज
(भरतना पुत्रोना मामा) तथा तेमना सेंकडो पुत्रो बेठा छे.
भरते पूछ्युं–आ कुमारोए शुं–शुं अध्ययन कर्युं छे? त्यारे जवाब मळ्‌यो के–
तेओ शस्त्र–शास्त्रादि अनेक विद्याओमां निपुण छे; विद्याधरोने उचित अनेक विद्याओ
तेमणे सिद्ध करी छे, अने तेओ सम्यक्दर्शनादिथी पण संयुक्त छे. भरते ते कुमारोने
त्यां बेसाडीने पोताना पुत्रोने पण बोलाव्या. भरतना सेंकडो पुत्रो पंक्तिबद्ध थईने
त्यां आववा लाग्या. पहेलां मधुराज, विधुराज नामना बे कुमारोए आवीने पिताना
तथा माताना चरणमां नमस्कार कर्या अने बाकीना कुमारोए पण नमस्कार कर्या.
कुमारोमां कोई पंदर वर्षना छे, अने कोई तेथी पण नानी उंमरना छे.
भरते पोताना पुत्रोने कह्युं–बेटा, तमे जरा तमारा शास्त्रानुभवने तो बतावो.
त्यारे ते कुशळ कुमारोए पोताना शास्त्रानुभवने दर्शाव्यो. क्यारेक व्याकरणथी
शब्दसिद्धि करी, क्यारेक न्यायशास्त्रथी तत्त्वसिद्धि करी, अने क्यारेक एकधाराप्रवाही
संस्कृत बोलता थका आगमना तत्त्वोनुं प्रतिपादन कर्युं.