Atmadharma magazine - Ank 293
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 39 of 45

background image
: ३६ : आत्मधर्म : फागण : २४९४ :
विहार कार्यक्रम गतांकमां जणाव्या मुजब छे : पू. गुरुदेव राजकोट पधार्या छे ने
त्यां फागण वद १ सुधी बिराजशे; फागण वद बीजे वडाल अने गीरनारदर्शन
करीने वद त्रीजे पोरबंदर पधारशे. त्यारबाद फा. वद १२ जेतपुर, चैत्र सुद १
गोंडल, चैत्र सुद ४ (बीजी) वडीआ, चैत्र सुद ८ मोरबी, चै. सुद १२ वांकानेर,
चै.वद २ चोटीला, चैत्र वद ३ थी १३ सुरेन्द्रनगर–वढवाण अने जोरावरनगर ए
त्रण गाम, चैत्र वद १४ थी वै.सु. ६ वींछीया; वै.सु. ७–८ उमराळा अने वै.सु.९ थी
१४ लींबडी–पुन : सोनगढ प्रवेश : वैशाख पूर्णिमा ता.१२–प–६८. त्यारबाद बीजे
दिवसे ता.१३–प–६८ थी विद्यार्थीओ माटेनो धार्मिक शिक्षणवर्ग शरू थशे.
आंखमां अंजन
एक सखीए बीजी सखीने आंखमां आंजण (काजल) आंजवा कह्युं.
त्यारे बीजी सखी कहे छे–मारा नयनमां कृष्ण एवा ठांसी ठांसीने भर्या छे
के तेमां हवे क्यांय आंजण आंजवानी जग्या नथी. नयनोमां कृष्णप्रेम एवो
छलकाय छे के तेमां आंजण समाय एटली पण जग्या बाकी रही नथी.
तेम धर्मीनी द्रष्टिमां चैतन्य प्रेम एवो भयोेर् छे के तेमां हवे बीजो
कोई रागनो अंश पण समाय तेम नथी. चैतन्य प्रभुना पूर्ण प्रेममां रागने
माटे कोई अवकाश ज नथी रह्यो. एना आत्मामां चेतन–राम वस्या छे,
तेमां हवे अन्य कोई भावो समाय तेम नथी.
(“अंजन रेख न आंखन भावे”)
सुमेळ
आ भरतक्षेत्रना पहेला तीर्थंकर अने विदेहक्षेत्रना पहेला तीर्थंकर–
बंनेनुं लांछन (चिह्न) एक ज (वृषभ).
आ भरतक्षेत्रना बीजा तीर्थंकर अने विदेहक्षेत्रना बीजा तीर्थंकर –
बंनेनुं लांछन एक ज (हाथी)
आ भरतक्षेत्रना चोथा तीर्थंकर अने विदेहक्षेत्रना चोथा तीर्थंकर–
बंनेनुं लांछन एक ज (वांदरो)