उपचारसे ‘दो ग्रन्थ’ संज्ञा दी है। उनमेंसे केवल परमानन्द और
आनन्दरुप भावोंका भेजना बन नहीं सकता है, इसलिये उनके
निमित्तभूत द्रव्योंका भेजना दोग्रन्थिक–पाहुड समझना चाहिए।
है। उनमेंसे केवलज्ञान और केवलदर्शनरुप नेत्रोंसे जिसने समस्त
लोकको देखलिया है, और जो राग और द्वेषसे रहित है ऐसे
जिनभगवानके द्वारा निर्दोष श्रेष्ठ विद्वान आचार्योंकी परम्परासे
भव्यजनोंके लिये भेजे गये बारह अंगोके वचनोंका समुदाय अथवा
उनका एकदेश परमानन्द दोग्रन्थिकपाहुड कहलाता है। इससे अतिरिक्त
शेष जिनागम आनन्दमात्र पाहुड है।
मारफत आ परमागमद्वारा परमानंद मोकल्यो छे. आनंदरूपभाव एकलो
तो कई रीते मोकलाय! एटले जाणे ते आनंदने आ प्राभृत–शास्त्रोमां
भरीने मोकल्यो छे...तेथी परमआनंदनुं निमित्त एवुं आ प्राभृत ते
परमानंदपाहुड छे...ने ते आजेय आपणने परमानंद आपे छे.