श्री तीर्थंकरभगवान अने गणधरादि गुरुओना प्रसादथी शुद्धआत्मानो उपदेश
समयप्राभृत एकत्व–विभक्त शुद्ध आत्मा देखाडे छे. जगतमां सर्वोत्कृष्ट एवो जे शुद्ध
आत्मा, तेने देखवा माटे आ समयसार अद्वितीय चक्षु छे. समयसारनी अलौकिक
रचना पूर्ण थतां छेल्ले ४१पमी गाथामां तेनुं उत्तम फळ बतावतां आचार्यभगवान
आशीर्वाद सहित कहे छे के अहो! जे भव्यजीव आ समयप्राभृतने भणशे, अर्थ अने
तत्त्वथी जाणशे, अने तेना अर्थमां (एटले वाच्यरूप शुद्ध आत्मामां) ठरशे ते जीव
स्वयं परम आनंदरूप थशे, उत्तमसुखरूप थशे.
उल्लसावीने आपणने अध्यात्मरसमां एवा तरबोळ करे छे–जाणे आपणने
सिद्धलोकमां लई गया होय,–के सीमंधरनाथनी साक्षात् वाणी सांभळवा लई गया
होय! पहेली गाथा द्वारा आत्मामां अनंत सिद्ध भगवंतोनी स्थापना करतां आत्मा
परपरिणतिथी पाछो हठे छे...ने निजपदनी प्रीती करीने आगळ वधतो वधतो ४१प
मी गाथामां पूर्ण आनंदरूपे परिणमी जाय छे...समयसारनुं आवुं उत्तम फळ सांभळतां
आत्मा घणो आनंदित थाय छे. आपणा महान धर्मभाग्य छे के, मात्र ७९ वर्ष पहेलां
साक्षात् तीर्थंकरदेव पासे रहेला पू. गुरुदेव परमअनुग्रहपूर्वक आपणने शुद्धआत्मा
आपे छे. बे हजार वर्ष पहेलां कुंदकुंद भगवाने समयसार द्वारा जे शुद्धात्मा देखाड्यो
ते ज शुद्धआत्मा कहानगुरु आजे आपणने देखाडी रह्या छे; ने ए रीते कुंदकुंदप्रभु
साथे भावनी संधि करावी रह्या छे.
बतावी छे. आत्मा पोते आनंदमय ज्ञानघन छे; आवा आत्मानो प्रत्यक्ष अनुभव