अनुभव करावे छे. ‘समयसार’ परथी भिन्नता बतावीने, आत्मानी सन्मुख
जोवडावे छे, आत्मानी सन्मुख जोतां ज महान अतीन्द्रिय आनंद अनुभवाय छे.
आवा परम आनंदनी प्राप्ति सहित आ समयसार पूर्णताने पामे छे. वाह! केवुं
अपूर्व मंगळ कर्युं छे!!
केवळज्ञान ने पूर्णसुखरूप परिणमन करावे छे. भगवान आत्माने देखाडनारुं आ
भागवत–शास्त्र छे, ते परम आनंदनुं देनार छे. जयधवलामां वीरसेनस्वामी कहे छे के
आ प्राभृतद्वारा केवळीभगवाने जगतने परमआनंदनी भेट आपी छे तेथी तेने
भरेलो एवो शुद्ध आत्मा आ शास्त्रो बतावे छे, तेथी जे जीव शास्त्रनुं हार्द समजे छे,
ने तेना वाच्यरूप शुद्धआत्माने जाणे छे ते जीवने पोतानो आत्मा परम आनंदसहित
अनुभवमां आवे छे. शास्त्र केवी रीते भणवां? ते पण आमां आवी गयुं–के वाच्यरूप
एवा परमार्थभूत शुद्धआत्मानी सन्मुख थवुं ते शास्त्रभणतरनुं तात्पर्य छे.
शुद्धआत्मानी सन्मुखताथी आत्मा स्वयं परम आनंदरूपे परिणमे छे.
भणाव्युं छे ने आत्मिकआनंद आप्यो छे...तेओश्रीनो महान उपकार छे. आपणे
सर्वउद्यमथी आत्माने आ शास्त्रना वाच्यरूप शुद्धात्मामां जोडीए, ने शास्त्रफळरूप
परमआनंदरूप