Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र २४९४ : आत्मधर्म : १७
(अनुसंधान पान ८ थी चालु)
सामान्य अने विशेष बंनेमां ज्ञान ज प्रकाशी रह्युं छे. ज्ञेयोने जाणती वखते
पण ज्ञान तो ज्ञाननुं ज छे, ज्ञान कांई ज्ञयोनुं नथी. रागने जाणती वखते ज्ञान तो
ज्ञान ज छे, ज्ञान कांई राग नथी. ज्ञान ने आनंद ते मारो स्वाद छे. रागादि ते मारो
स्वाद नथी–आवी भिन्नतानुं भान भूलीने अज्ञानी ज्ञानने अने रागादि ज्ञेयोने
भेळसेळ अनुभवे छे. हाथीनी जेम;– हाथीने चूरमुं अने घास बंनेनी भिन्नतानो विवेक
नथी, बंनेने मिश्रपणे खाय छे; तेम अज्ञानी ज्ञान अने रागने मिश्रपणे अनुभवे छे,
एटले आनंदनो स्वाद तेने आवतो नथी.
अहीं तो कहे छे के आवा भिन्न ज्ञानने जे अनुभवे छे ते सकल श्रुतरूप
जिनशासनने अनुभवे छे. विकल्पने ज्ञेय करीने जे अटके छे ते जिनशासनने
अनुभवतो नथी, एटले भगवानना उपदेशने जाणतो नथी. शुद्ध आत्माने जाणतो
नथी ने आनंदने पामतो नथी.
पर्याय ज्यारे सामान्यस्वभाव तरफ झुकी त्यारे सामान्यनो आविर्भाव थयो
कहेवाय छे. पर्यायमां एकला परने ज देखे ने स्वने न देेखे तो तेेने सामान्यनो
तिरोभाव थई गयो छे ने विशेषनो आविर्भाव थयो छे. जो के विशेषना आविर्भाव
वखतेय ज्ञानी तो ज्ञानने ज्ञानपणे ज देखे छे, एटले ते विशेष वखतेय पोताने परथी
भिन्न ज्ञानपणे ज अनुभवे छे. आवो अनुभव ते जिनशासन छे.
जिनशासन एटले शुं? अथवा भगवाननो उपदेश क्यारे समज्यो कहेवाय?
तेनी आ वात छे. ज्ञानपर्याय रागथी ने परसंयोगथी मुक्त थईने पोताना
चिदानंदस्वभावमां एकतारूपे परिणमी, तेमां शुद्ध आत्मानी अनुभूति थई, तेने
जिनशासन कह्युं छे. आ ज भगवाने उपदेशेला सर्व श्रुतनो सार छे.
सामान्य अने विशेष बंनेना आविर्भाव वखते पण ज्ञान तो ज्ञान ज छे, ज्ञान
कांई ज्ञेयपणे प्रसिद्ध नथी थतुं पण ज्ञान तो ज्ञानपणे ज प्रसिद्ध