
ज्ञान थतुं होवा छतां कोई पदार्थनुं आकर्षण रह्युं नथी. बहारना पदार्थो कांई जीवने
कहेता नथी के तुं अमारा तरफ आकर्षा! जीव ज पोताना उपयोगने ते तरफ दोडावीने
राग–द्वेष करे छे; एटले, बाह्य पदार्थोनुं आकर्षण मटाडवानो उपाय ए छे के पोताना
एक कवि कहे छे के :–
परम पूज्य गुरुदेव सुखशांतिपूर्वक सौराष्ट्रमां विचरी रह्या छे. सोनगढथी लाठी
राजकोटथी वडाल गामे पधार्या, सांजे नेमप्रभुनी पवित्र विहारभूमि गीरनारतीर्थना
दर्शन जई आव्या; त्यां “मारा नेम प्रभु गीरनारी चाल्या...” ए वैराग्य स्तवन
गुरुदेवे गवडाव्युं. वडाल पछी पोरबंदर पधार्या...त्यां आठ दिवस समयसार
गा.१७,१८,७२ तथा गा. ९७ उपर प्रवचनो थया. पोरबंदरथी चार दिवस जेतपुर
पधार्या; त्यारबाद गोंडल अने वडीआ थईने, (आप ज्यारे आ आत्मधर्म वांचता
हशो त्यारे) गुरुदेव मोरबीमां बिराजता हशे. त्यार पछी कार्यक्रम नीचे मुजब छे–
१४) सोनगढ प्रवेश वैशाख सुद १प.