Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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३६ : आत्मधर्म : चैत्र २४९४
लीन कर्यो. पछी वीतरागता अने केवळज्ञान थतां, आखा जगतना बधाय पदार्थोनुं
ज्ञान थतुं होवा छतां कोई पदार्थनुं आकर्षण रह्युं नथी. बहारना पदार्थो कांई जीवने
कहेता नथी के तुं अमारा तरफ आकर्षा! जीव ज पोताना उपयोगने ते तरफ दोडावीने
राग–द्वेष करे छे; एटले, बाह्य पदार्थोनुं आकर्षण मटाडवानो उपाय ए छे के पोताना
उपयोगने आत्मा तरफ वाळवो. उपयोग अंतरमां वळे तो बाह्य पदार्थनुं आकर्षण टळे.
एक कवि कहे छे के :–
जब निज आतम अनुभव आवे.....
और कछु न सुहावे......जब निज आतम अनुभव आवे.




परम पूज्य गुरुदेव सुखशांतिपूर्वक सौराष्ट्रमां विचरी रह्या छे. सोनगढथी लाठी
थईने राजकोट पधार्या....त्यां १३ दिवस दरमियान (समयसार गा.१प, प्रवचनसार
गा.१७२ तथा समयसार–जयसेनाचार्यनी टीका गा.३२० उपर) सुंदर प्रवचनो थया.
राजकोटथी वडाल गामे पधार्या, सांजे नेमप्रभुनी पवित्र विहारभूमि गीरनारतीर्थना
दर्शन जई आव्या; त्यां “मारा नेम प्रभु गीरनारी चाल्या...” ए वैराग्य स्तवन
गुरुदेवे गवडाव्युं. वडाल पछी पोरबंदर पधार्या...त्यां आठ दिवस समयसार
गा.१७,१८,७२ तथा गा. ९७ उपर प्रवचनो थया. पोरबंदरथी चार दिवस जेतपुर
पधार्या; त्यारबाद गोंडल अने वडीआ थईने, (आप ज्यारे आ आत्मधर्म वांचता
हशो त्यारे) गुरुदेव मोरबीमां बिराजता हशे. त्यार पछी कार्यक्रम नीचे मुजब छे–
वांकानेर (चैत्र सुद १२ थी १प) चोटीला (चैत्र वद २) सुरेन्द्रनगर (चैत्र
वद–३ थी ६) वढवाण (चैत्र वद ७ थी १०) जोरावरनगर (चैत्र वद ११ थी १३)
वींछीया (चैत्र वद १४ थी वै.सु. ६ ) उमराळा (वैशाख सु.७–८) लींबडी (वै.सु.९ थी
१४) सोनगढ प्रवेश वैशाख सुद १प.