Atmadharma magazine - Ank 294
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: आत्मधर्म : चैत्र २४९४
आ समयसारनी १पमी गाथा वंचाय छे. समयसार एटले शुद्ध आत्मा; ने शुद्ध
आत्मा ए जिनशासन; शुद्ध आत्माना अनुभव वगर जिनशासननी खबर न पडे.
अहीं सम्यग्दर्शनपूर्वक ज्ञानमां जे शुद्धात्मानी अनुभूति थई–तेनुं वर्णन आ पंदरमी
गाथामां छे. शुद्ध आत्माना अनुभवथी पवित्र आनंददशा थई ते जिनशासन.
जिन सोही है आत्मा; अन्य है सो कर्म;
कर्म कटे सो जिनवचन, यही तत्त्वज्ञानीका मर्म.
(श्रीमद् राजचंद्र)
आत्माना स्वभावनो घणो महिमा छे, ते पहेलां लक्षगत थवो जोईए. आवा
आत्माना अनुभव वगर आखी दुनिया दुःखी छे. शुद्ध आत्मानी जेने खबर नथी ने
राग–द्वेष–पुण्य–पाप वगेरेमां सुख मानी रह्या छे ते तो बधा आकुळतारूपी दुःखना
डुंगरे बळी रह्या छे. आत्मा तो परम शांतिरूप आनंदनो डुंगरो छे. अनंत सर्वज्ञ
परमेश्वरे आवा आत्माने प्रगट कर्यो छे. जगतमां सर्वज्ञ अनादिथी सदाय छे ने नवा
नवा थता ज आवे छे. त्रणकाळने जाणनार एवा त्रिकाळज्ञनो त्रणकाळमां कदी विरह
नथी. अत्यारे विदेहक्षेत्रमां सीमंधर भगवान वगेरे लाखो केवळीभगवंतो बिराजी रह्या
छे ने दिव्यध्वनि वडे जिनशासन उपदेशी रह्या छे. ते जिनशासनमां केवो आत्मा कह्यो
छे तेनुं आ समयसारनी १प मी गाथामां वर्णन छे–
जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुट्ठं अणण्णमविसेसं
अपदेससन्तमज्झं पस्सदि जिणसासणं सव्वं ।।
१५।।
अबद्धस्पृष्ट, अनन्य जे अविशेष देखे आत्मने,
ते द्रव्य तेमज भाव जिनशासन सकल देखे खरे. १प.
जे पुरुष आत्माने अबद्धस्पृष्ट अनन्य अविशेष तथा नियत अने असंयुक्त
देखे छे ते सर्व जिनशासनने देखे छे, –के जे जिनशासन बाह्य द्रव्यश्रुत तेम ज
अभ्यंतर ज्ञानरूप भावश्रुतवाळुं छे.
“जे आ अबद्धस्पृष्ट अनन्य नियत अविशेष अने असंयुक्त एवा पांच
भावोस्वरूप आत्मानी अनुभूति छे ते निश्चयथी समस्त जिनशासननी अनुभूति
छे...”