निर्मम आत्मस्वभावने तेणे जाण्यो नथी. परभावनो एक अंश पण जेमां समाय नहि
एवा ज्ञानदर्शनस्वभावथी परिपूर्ण मारो आत्मा छे. जेम आकाश वगेरे द्रव्य पोत
पोताना विशेष स्वभावमां रहेला छे, परमार्थ वस्तुविशेष छे, तेम हुं मारा परिपूर्ण
ज्ञान–दर्शन स्वभावमां रहेल परमार्थ वस्तु–विशेष छुं; अन्य द्रव्योथी असाधारण एवा
मारा विशेष स्वभावमां–ज्ञानदर्शनथी परिपूर्ण स्वभावमां हुं सदाय रहेलो छुं, ने
रागादिपणे हुं जरापण थतो नथी.–आवा आत्म स्वभावनो निश्चय करीने तेमां
उपयोग निश्चल रहेतां आत्मामांथी सर्वे आस्रव भावो छूटी जाय छे ने आत्मा
निर्विकल्प विज्ञानघन आनंदरूप थाय छे. जेम समुद्र तरंगोथी क्षुब्ध थईने भमरी
खातो होय, त्यारे ते भमरीमां वहाणने पकडी राखे छे, पण ज्यां वमळ ठरीने समुद्र
शांत थयो त्यां वहाणने छोडीने दे छे. तेम आ भगवान चैतन्य समुद्र पहेलां राग अने
विकल्पोनी पक्कडथी मिथ्यात्वरूपी वमळमां हतो त्यारे तेणे आस्रवोने पकडी राख्या
हता, पण ज्यां रागथी भिन्न पोताना चिदानंद शुद्धस्वरूपनो निर्णय करीने पोते
पोतामां निश्चल थयो, पोते शांतरसमां मग्न थयो, त्यां वमळ शमी गया ने विकल्पोने
छोडीने आत्मा निर्विकल्प विज्ञानघन स्वभावे परिणम्यो.–आ आस्रवोथी छूटवानी
रीत, ने आ मोक्षनो मार्ग. आ विधिथी ज आत्मा बंधनथी छूटीने मुक्ति पामे छे.
अनंता जीवो मोक्ष पाम्या छे ने अनंता जीवो मोक्ष पामशे ते बधाय जीवो आ ज
रीतथी मोक्ष पाम्या छे ने पामशे; आ सिवाय मोक्षनी बीजी कोई रीत नथी.
महा दुःखनुं कारण छे एवा ऊंधा मार्गमां अज्ञानी जीवो निःशंक थईने वर्ते छे, ने
पोताना हित माटेनो जे साचो मार्ग वीतरागी सन्तो बतावे तेमां शंका करे छे.–ए जीव
दुःखमांथी केम छूटे? भाई, अनंता जन्ममरण टाळवानी ने अनंतुं सुख पामवानी
साची रीत सन्तो बतावे छे, ते जाणीने निःशंक था. आत्मानुं जेवुं परमार्थस्वरूप छे तेवुं
लक्षमां लई, निश्चय करीने तेनो अनुभव करवो ते ज दुःखथी छूटवानी रीत छे.