Atmadharma magazine - Ank 295
(Year 25 - Vir Nirvana Samvat 2494, A.D. 1968)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : “आत्मधर्म” : वैशाख : र४९४
सदाय विज्ञानघनस्वभावपणे एक एवो हुं ‘शुद्ध’ छुं, मारी निर्मळ अनुभूति
सर्वे कारकोना भेदथी पार छे. जडना कर्ता–कर्म वगेरे कारको तो आत्मामां कदी नथी;
राग अने विकल्पनी क्रियासंबंधी कारको पण आत्मानी अनुभूतिमां नथी. अने निर्मळ
पर्यायरूप क्रियानो हुं कर्ता, ते मारुं कर्म, ज्ञान तेनुं साधन–एवा जे निर्मळ कारकोना
भेदना विकल्पो ते पण शुद्ध आत्मानी अनुभूतिमां नथी. ते विकल्पोथी पण पार शुद्ध
अनुभूतिमात्र हुं छुं.
जुओ, आवा आत्माना निर्णय वगर सम्यग्दर्शन थाय नहि. सम्यग्दर्शन
पामनारने बीजा विकल्पो तो वच्चे आवे के न आवे, पण आत्मानो आवो निर्णय तो
जरूर तेने आवे ज. आवा निर्णय पछी अनुभववडे सम्यग्दर्शन थाय छे.
सम्यग्दर्शनरूपी बीज ऊगी पछी ते जीवने केवळज्ञानरूपी पूर्णिमा थाय ज.
अहो, आत्मा तो पोतानी निर्मळ अनुभूति स्वरूप छे तेथी ते शुद्ध छे. निर्मळ
अनुभूतिमां विकल्पनी अशुद्धता नथी, कर्ता–कर्मना भेद नथी. आवी अनुभूतिमां
चैतन्यना महान स्वाद पासे आखी दुनियानो रस छूटी जाय छे. चैतन्यना आनंद पासे
बीजुं बधुं थोथां जेवुं छे. आवो निर्णय करे तेने शुभ विकल्पनुं स्वामीपणुं पोतामां
भासतुं नथी.
ज्ञानस्वभावी एवो मारो आत्मा प्रत्यक्ष छे, एक छे, निर्मळ अनुभूतिरूप शुद्ध
छे; ते क्रोधादि कोई परभावोना स्वामीपणे परिणमतो नथी–तेमां एकपणे परिणमतो
नथी, तेथी हुं ममतारहित छुं; परभावनो अंशपण मने स्वपणे भासतो नथी.–जे शुद्ध
आत्मानो अनुभव करवो छे तेने पहेलां निर्णयमां तो लेवो जोईए ने? ते निर्णयनी
आ वात छे.
क्रोधादिभावोना स्वामीपणे धर्मीनो आत्मा परिणमतो नथी, ते तो क्रोधथी भिन्न
ज्ञानना ज स्वामीपणे परिणमे छे. क्रोधादि भावो कहेतां पाप अने पुण्य बंने भावो
तेमां लई लेवा. शुभ रागनो स्वामी थईने अज्ञानी स्वर्गमां पण दुःखी ज छे. अरे,
स्वर्गमां दुःख! हा, भाई! ए संयोगमां कांई थोडुं सुख छे? अंदर दुःखना कारणरूप
परभाव साथेनी एकत्वबुद्धि जेने पडी छे ते जीव स्वर्गमां पण दुःखी ज छे. सुख–दुख
कांई संयोगमां नथी, सुख–दुःख तो पोताना परिणाममां छे. अहीं तो अनादिनुं अज्ञान
ने दुःख टाळीने आत्माने सुखी केम करवो तेनी वात छे.
आत्माने सुखी करवा माटे तेना यथार्थ स्वरूपनो निश्चय अने अनुभव
करवानी आ वात छे. परभावनो एक अंश पण मारा चिदानंदस्वरूपमां नथी.
ज्ञानभावथी परिपूर्ण एवो हुं ममतारहित छुं केमके परभावना एक अंशनुंय स्वामीत्व