राग अने विकल्पनी क्रियासंबंधी कारको पण आत्मानी अनुभूतिमां नथी. अने निर्मळ
पर्यायरूप क्रियानो हुं कर्ता, ते मारुं कर्म, ज्ञान तेनुं साधन–एवा जे निर्मळ कारकोना
भेदना विकल्पो ते पण शुद्ध आत्मानी अनुभूतिमां नथी. ते विकल्पोथी पण पार शुद्ध
अनुभूतिमात्र हुं छुं.
जरूर तेने आवे ज. आवा निर्णय पछी अनुभववडे सम्यग्दर्शन थाय छे.
सम्यग्दर्शनरूपी बीज ऊगी पछी ते जीवने केवळज्ञानरूपी पूर्णिमा थाय ज.
चैतन्यना महान स्वाद पासे आखी दुनियानो रस छूटी जाय छे. चैतन्यना आनंद पासे
बीजुं बधुं थोथां जेवुं छे. आवो निर्णय करे तेने शुभ विकल्पनुं स्वामीपणुं पोतामां
भासतुं नथी.
नथी, तेथी हुं ममतारहित छुं; परभावनो अंशपण मने स्वपणे भासतो नथी.–जे शुद्ध
आत्मानो अनुभव करवो छे तेने पहेलां निर्णयमां तो लेवो जोईए ने? ते निर्णयनी
आ वात छे.
तेमां लई लेवा. शुभ रागनो स्वामी थईने अज्ञानी स्वर्गमां पण दुःखी ज छे. अरे,
स्वर्गमां दुःख! हा, भाई! ए संयोगमां कांई थोडुं सुख छे? अंदर दुःखना कारणरूप
परभाव साथेनी एकत्वबुद्धि जेने पडी छे ते जीव स्वर्गमां पण दुःखी ज छे. सुख–दुख
कांई संयोगमां नथी, सुख–दुःख तो पोताना परिणाममां छे. अहीं तो अनादिनुं अज्ञान
ने दुःख टाळीने आत्माने सुखी केम करवो तेनी वात छे.
ज्ञानभावथी परिपूर्ण एवो हुं ममतारहित छुं केमके परभावना एक अंशनुंय स्वामीत्व